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प्रमेयकमलमार्त्तण्डे
तथा सिद्धः श्रावणः शब्द: ।। १४ ।।
सिद्ध: पक्षाभासः, यथा श्रावण: शब्द इति, वादिप्रतिवादिनोस्तत्राऽविप्रतिपत्तेः । तथा
बाधितः प्रत्यक्षानुमानागमलोकस्ववचनैः || १५ ॥
पक्षाभासो भवति ।
तत्र प्रत्यक्षबाधितो यथा
अनुष्णोग्निद्रव्यत्वाज्जलवत् ।। १६ ।।
अनुमानबाधितो यथा
तथा सिद्धः श्रावणः शब्द: ।। १४ ।।
अर्थ - पक्ष में रहने वाला साध्य असिद्ध विशेषण वाला होना चाहिये उसे न समझकर कोई सिद्ध को ही पक्ष बनावे तो वह सिद्ध पक्षाभास कहलाता है, जैसे किसी ने पक्ष उपस्थित किया कि "श्रावरणः शब्द: " शब्द श्रवणेन्द्रिय द्वारा ग्राह्य होता है सो ऐसे समय पर वह पक्षाभास होगा क्योंकि शब्द श्रवणेन्द्रिय ग्राह्य होता है । ऐसा सभी को सिद्ध है, वादी प्रतिवादी का इसमें कोई विवाद नहीं है ।
बाधितः प्रत्यक्षानुमानागमलोकस्ववचनैः ।। १५ ।।
अर्थ - बाधित पक्ष पांच प्रकार का है प्रत्यक्ष बाधित, अनुमान बाधित, श्रागम बाधित, लोक बाधित, प्रौर स्ववचन बाधित, जो भी पक्ष रखे वह प्रबाधित होना चाहिये ऐसा पहले कहा था किन्तु उसे स्मरण नहीं करके कोई बाधित को पक्ष बनावे तो वह बाधित पक्षाभास है । अब इनके पांच भेदों में से प्रत्यक्ष बाधित पक्षाभास का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं
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श्रनुष्णोऽग्निद्रव्यत्वाज्जलवत् ।।१६।।
अर्थ - अग्नि ठंडी है, क्योंकि वह द्रव्य है, जैसे जल द्रव्य होने से ठंडा होता है । इसप्रकार कहना प्रत्यक्ष बाधित है, क्योंकि साक्षात् ही अग्नि उष्ण सिद्ध हो रही है । अनुमान बाधित पक्षाभास का उदाहरण
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