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तदाभासस्वरूप विचार:
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साधनात्साध्य विज्ञानमनुमानमित्युक्तम् । तद्विपरीतं त्विदं वक्ष्यमाणमनुमानाभासम् । पक्षहेतुदृष्टान्तपूर्वकश्चानुमानप्रयोगः प्रतिपादित इति । तत्रेत्यादिना यथाक्रमं पक्षाभासादीनुदाहरति ।
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तत्र अनिष्टादिः पक्षाभासः ।। १२ ।
तत्रानुमानाभासेऽनिष्टादि: पक्षाभासः तत्र -
श्रनिष्टो मीमांसकस्याऽनित्यः शब्द इति ।। १३ ।।
स हि प्रतिवाद्यादिदर्शनात्कदाचिदाकुलितबुद्धिविस्मरन्ननभिप्र ेतमपि पक्षं करोति ।
अर्थ - अब यहां से अनुमाना भासका प्रकरण शुरु होता है, साधन से होने वाले साध्य के ज्ञान को अनुमान कहते हैं ऐसा अनुमान का लक्षण पहले कहा था इससे विपरीत ज्ञानको अनुमानाभास कहते हैं । पक्ष हेतु दृष्टांतपूर्वक अनुमान प्रयोग होता है ऐसा प्रतिपादन किया था उन पक्ष आदि का जैसा स्वरूप बतलाया है उससे विपरीत स्वरूप वाले पक्ष आदि का प्रयोग करने से पक्षाभास आदि बनते हैं और इससे अनुमान भी अनुमानभास बनते हैं, अब क्रम से इनको कहते हैं
तत्र अनिष्टादि: पक्षाभासः ।।१२।।
अर्थ - प्रनिष्ट आदि को पक्ष बनाना पक्षाभास है, इष्ट, अबाधित और प्रसिद्ध ऐसा साध्य होता है, साध्य जहां पर रहता है उसे पक्ष कहते हैं, जिस पक्ष में अनिष्टपना हो या बाधा हो अथवा सिद्ध हो वे सब पक्षाभास हैं ।
अनिष्टो मीमांसकस्याऽनित्यः शब्द इति ।। १३ ।।
अर्थ - मीमांसक शब्द को नित्य मानने का पक्ष रखते हैं किंतु यदि कदाचित् वे पक्ष बनावें कि अनित्यः शब्दः, कृतकत्वात् शब्द नित्य है, क्योंकि वह किया हु है, इसतरह शब्द को अनित्य बताना उन्हींके लिये अनिष्ट हुआ, प्रतिवादी के मत को देखना प्रादि के निमित्त से कदाचित् आकुलित बुद्धि होकर वादी अपने पक्ष को विस्मृत कर अनिष्ट ऐसे परमत के पक्ष को करने लग जाता है ।
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