Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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तदाभासस्वरूपविचार:
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अथेदानों पक्ष भासानन्तरं हेत्वाभासेत्यादिना हेत्वाभासानाह
हेत्वाभासा प्रसिद्धविरुद्धानकान्तिकाऽकिञ्चित्कराः ॥ २१ ॥ माध्याविनाभावित्वेन निश्चितो हेतुरित्युक्त प्राक् । तद्विपरीतास्तु हेत्वाभासाः । के ते ? प्रसिद्ध विरुद्धानेकान्तिकाकिंचित्कराः । तत्रासिद्धस्य स्वरूपं निरूपयति
असत्सत्तानिश्चयोऽसिद्धः इति ।। २२ ।। सत्ता च निश्चयश्च [सत्तानिश्चयो] असन्ती सत्तानिश्चयो यस्य स तथोक्तः । तत्र
_अर्थ-मेरी माता वन्ध्या है, क्योंकि पुरुष का संयोग होने पर भी गर्भधारण नहीं करती, जैसे प्रसिद्ध वन्ध्या स्त्री गर्भधारण नहीं करती, ऐसा किसी ने पक्ष कहा यह उसी के वचन से बाधित है मेरी माता और फिर वन्ध्या, यह होना अशक्य है यदि माता वन्ध्या होती तो तू कहां से होता ? इसतरह प्रत्यक्ष बाधित आदि पक्ष को स्थापित करने से वह अनुमान गलत हो जाता है अतः अनुमान का प्रयोग करते समय इष्ट, अबाधित और प्रसिद्ध इन विशेषणों से युक्त ऐसे पक्षका ही प्रयोग करना चाहिये, अन्यथा पक्षाभास होने से अनुमान भी असत् ठहरता है। इसप्रकार नौ सूत्रों द्वारा पक्षाभास का वर्णन करके अब प्रागे अठारह सूत्रों द्वारा हेत्वाभासों का वर्णन करते हैं
हेत्वाभासा प्रसिद्ध विरुद्धानकान्तिका किञ्चित्कराः ।।२।।
अर्थ-हेत्वाभास के चार भेद हैं, प्रसिद्ध, विरुद्ध, अनैकान्तिक और अकिञ्चित्कर साध्य के साथ जिसका अविनाभावी सम्बन्ध हो वह हेतु कहलाता है, ऐसा हेतु का लक्षण जिसमें न पाया जाय वह हेत्वाभास है, उसके ये असिद्धादि चार भेद हैं। उनमें से प्रसिद्ध हेत्वाभास का निरूपण करते हैं
___ असत् सत्ता निश्चयोऽसिद्ध: ।।२२।। अर्थ – जो हेतु साध्य में मौजूद नहीं हो वह स्वरूपासिद्ध हेत्वाभास है तथा जिसका साध्य में रहना निश्चित न हो वह सन्दिग्धासिद्ध हेत्वाभास है, यानी जिस
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