Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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अथ पञ्चमः परिच्छेदः
अथेदानीं तदाभासस्वरूपनिरूपणाय
ततोन्यत्चदाभासम् ॥ १॥ इत्याद्याह ।
प्रतिपादितस्वरूपात्प्रमाणसंख्याप्रमेयफलाद्यदन्यत्तत्तदाभासमिति । तदेव तथाहीत्यादिना यथाक्रमं । व्याचष्टे । तत्र प्रतिपादितस्वरूपात्स्वार्थव्यवसायात्मकप्रमाणादन्ये
अब यहां पर प्रमाणाभास, संख्याभास, विषयाभास और फलाभास का वर्णन करते हैं
ततोन्यत्तदाभासम् ।।१।। अर्थ-पहले जिनका वर्णन किया था ऐसे प्रमाणों का तथा उनकी संख्या विषय एवं फल इन चारों का जो स्वरूप बताया उससे विपरीत स्वरूप वाले प्रमाणाभास संख्याभास आदि हुआ करते हैं, अर्थात् प्रमाण का स्वरूप स्वपर का निश्चय करना है इससे विपरीत स्वरूपवाला प्रमाणाभास कहलाता है । प्रमाण की प्रमुख संख्या दो हैं इससे कम अधिक संख्या मानना संख्याभास है। प्रमाण का विषय सामान्य विशेषात्मक वस्तु है उसमें अकेला सामान्यादिको विषय बताना विषयाभास है । प्रमाण का फल प्रमाण से कथंचित् भिन्न तथा कथंचित् अभिन्न होता है उससे विपरीत सर्वथा भिन्न या अभिन्न मानना फलाभास है। इन्हीं को आगे क्रम से श्रीमाणिक्यनन्दी आचार्य सूत्र द्वारा प्रतिपादन करते हैं-सर्व प्रथम स्वार्थ व्यवसायात्मक प्रमाण से अन्य जो हो वह प्रमाणाभास है ऐसा प्रमाणाभास का लक्षण करते हुए कहते हैं
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