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प्रमेयकमलमार्तण्डे थिके प्रमाणफले प्रतीतिसिद्ध कथञ्चिद्भिन्ने प्रतिपत्तव्ये प्रमाणफलव्यवस्थान्यथानुपपत्ते रिति स्थितम् । को प्रकाशित करता है, इसमें प्रदीप कर्ता से प्रकाशरूप करण पृथक् नहीं दिखता न कोई इसे पृथक् मानता ही है एवं प्रकाशन क्रिया भी भिन्न नहीं है, प्रमाण और फल वसूला और काष्ठ छेदन क्रिया के समान नहीं है अपितु प्रकाश और प्रकाशन क्रिया के समान अभिन्न है अतः प्रमाण से उसके फल को सर्वथा भिन्न मानने का हटाग्रह अज्ञान पूर्ण है । प्रमाण से उसके फलको सर्वथा अभिन्न बताने वाले बौद्ध के यहां भी बाधा आती है, क्योंकि प्रमाण और उसका फल सर्वथा अभिन्न है, अपृथक् है तो यह प्रमाण है और यह उसका फल है ऐसी व्यवस्था नहीं हो सकती । अतः सही मार्ग तो स्याद्वाद की शरण लेने पर ही मिलता है कि प्रमाण का फल प्रमाण से कथंचित् भिन्न और कथंचित अभिन्न है लक्षण, प्रजोजन, आदि की अपेक्षा तो भिन्न है, प्रमाण का लक्षण स्वपर को जानना है और अज्ञान दूर होना इत्यादि फल का लक्षण है । हान, उपादान एवं उपेक्षा ये भी प्रमाण के फल हैं, जो पुरुष जानता है वही हान क्रिया को करता है अर्थात प्रमाण द्वारा यह पदार्थ अनिष्टकारी है ऐसा जानकर उसे छोड़ देता है, तथा उपादान क्रिया अर्थात् यह पदार्थ इष्ट है ऐसा जानकर उसे ग्रहण करता है, जो पदार्थ न इष्ट है और न अनिष्ट है उसकी उपेक्षा करता है-उसमें मध्यस्थता रखता है, यह सब उस प्रमाता पुरुष की ही क्रिया है यह प्रमाण का फल परम्परा फल कहलाता है क्योंकि प्रथम फल तो उस वस्तु सम्बन्धी अज्ञान दूर होना है, अज्ञान के निवृत्त होने पर उसे छोड़ना या ग्रहण करना आदि क्रमशः बाद में होता है । इसप्रकार प्रमाण और फल में कथंचित् भेद और कथंचित् अभेद है ऐसा सिद्ध होता है। इसप्रकार विषय परिच्छेद नामा इस अध्याय में श्री प्रभाचन्द्राचार्य ने प्रमाण का विषय क्या है इसका बहत विस्तृत विवेचन किया है अंत में यह फल का प्रकरण भी दिया है इस परिच्छेद में प्रमाण का विषय बतलाते हुए सामान्य स्वरूप विचार, ब्राह्मणत्व जाति निरास, क्षण भंगवाद, सम्बन्ध सद्भाववाद, अन्वय्यात्मसिद्धि, सामान्यविशेषात्मकवाद, अवयविस्वरूपविचार, परमाणुरूप नित्यद्रव्यविचार, आकाशद्रव्यविचार, काल तथा दिशाद्रव्यविचार,
आत्मद्रव्यविचार, गुणपदार्थविचार, कर्म पदार्थ एवं विशेषपदार्थविचार, समवायपदार्थ विचार, धर्मअधर्मद्रव्यविचार और अंतिम फलस्वरूपविचार इसतरह सोलह प्रकरणों पर विमर्श किया गया है, ये प्रकरण कुछ बौद्ध सम्बन्धी हैं और कुछ वैशेषिक सम्बन्धी
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