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समवायपदार्थविचारः
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संयोगस्य भेदः । ‘निविड : संयोग : शिथिलः संयोगः' इति प्रत्ययभेदात्संयोगस्य भेदाभ्युपगमे 'नित्यं समवायः कदाचित्समवाय:' इति प्रत्ययभेदात्समवायस्यापि भेदोस्तु | समवायिनोनित्यकादाचित्कत्वाभ्यां समवाये तत्प्रत्ययोत्पत्तौ संयोगिनोर्निबिडत्वशिथिलत्वाभ्यां संयोगे तथा प्रत्ययोत्पत्तिः स्यान्न पुनः संयोगस्य निबिडत्वादिस्वभावभेदात् इत्येकं संधित्सोरन्यत् प्रच्यवते ।
तथा, 'नाना समवायोऽयुतसिद्धावयविद्रव्याश्रितत्वात् संख्यावत्' इत्यतोप्यस्यानेकत्वसिद्धिः ।
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दिवाल आदि का संयोग भिन्न है । ऐसे ऐसे अनगिनती संयोग देखने में आते हैंपुस्तक चौकी, स्लेट पेन्सिल, दवात कलम, कुण्डा बेर इत्यादि पदार्थों के संयोग भिन्न भिन्न हैं, इसीतरह समवाय भी भिन्न भिन्न अनेक सिद्ध होते हैं । कोई कहे कि संयोग के अनेक प्रकार इसलिये होते हैं कि यह घनिष्ट संयोग है, यह संयोग शिथिल हैविरल है इत्यादि भिन्न भिन्न प्रतिभास होने के कारण संयोग नानारूप सिद्ध होते हैं । तो नित्य समवाय है, कदाचित् होने वाला समवाय है इत्यादि भिन्न भिन्न प्रतिभास होने से समवाय में भी भेद मानना चाहिये ।
शंका-समवायी पदार्थों के निमित्त से नित्य इत्यादि प्रतिभास की उत्पत्ति हुआ करती है, अर्थात् नित्य समवायी दो द्रव्य नित्यरूप से समवाय की प्रतीति कराते हैं और अनित्य- कादाचित्क सम्बन्ध वाले दो द्रव्य कदाचित् रूप से समवाय की प्रतीति कराते हैं किन्तु समवाय स्वयं भिन्न भिन्न नहीं है ?
समाधान- - तो फिर संयोग भी संयोगी द्रव्यों के निबिड और शिथिलपने के कारण ही नाना प्रतिभासों को कराता है, संयोग स्वयं निबिडादि स्वभाव भेद से नाना प्रतिभास नहीं कराता ऐसा मानना होगा । इसतरह प्राप समवाय को एक सिद्ध करना चाहते हैं तो संयोग भी एकरूप सिद्ध हो जाता है, एक को सुधारने चले तो अन्य का बिगाड़ हुआ, एक को जोड़ने चले तो दूसरा छिन्न हुआ, कुए से बचने चले तो खाई में आ गिरे, इसतरह की प्राप वैशेषिक की दशा हुई ।
समवाय को नानारूप सिद्ध करने वाला और भी हैं, क्योंकि प्रयुतसिद्ध अवयवी द्रव्यों के प्राश्रयों में रहते हैं, श्राश्रयों में रहने से अनेक हैं । इस अनुमान प्रमाण द्वारा भी
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अनुमान है समवाय अनेक जिस तरह संख्या अनेक समवाय अनेक रूप सिद्ध
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