Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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समवायपदार्थविचारः वसाययोश्च प्रमाणादिषोडशपदार्थेभ्योऽर्थान्तरभूतयो: प्रतीतेः ।
शब्द रूप है। तर्क, निर्णय ये दोनों ज्ञानात्मक या वचनात्मक हैं। वाद, जल्प और वितण्डा स्पष्ट रूप से विवाद-बातचीत या वचनरूप हैं । इसीप्रकार छल, जाति और निग्रह स्थान ये सब सभा में विवाद करते समय गलत अनुमान वाक्य कहने के प्रकार हैं और ये ज्ञान के अल्प होने से या वचन कौशल के न होने से प्रयुक्त होते हैं, इस प्रकार इन सोलह तत्वों का प्रतिपादन वन्ध्या सुत के व्यावर्णन सदृश असत् है, क्योंकि उनका स्वरूप-लक्षण इस उपर्युक्त कथनानुसार असम्भव ठहरता है, ज्ञान के वचन के भेद कोई तत्व कहलाते हैं ? अर्थात् नहीं कहलाते । इसतरह जैनाचार्य ने अपने अगाध पांडित्य द्वारा-सम्यग्ज्ञान पूर्ण युक्ति द्वारा वैशेषिक-नैयायिक के अभिमत पदार्थों का खण्डन किया है।
॥ समवायपदार्थविचार समाप्त ॥
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