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धर्माधर्मद्रव्यविचारः
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धर्माधर्मद्रव्ययोश्च । कुतः प्रमाणात्तत्सिद्धिरिति चेत् ? अनुमानात्; तथाहि-विवादापन्नाः सकलजीवपुद्गलाश्रयाः सकृद्गतय : साधारणबाह्यनिमित्तापेक्षाः, युगपद्भाविगतित्वात्, एकसरः सलिला श्रयानेकमत्स्यगतिवत् । तथा सकलजीवपुद्गल स्थितयः साधारणबाह्यनिमितापेक्षाः, युगपद्भा
जैन सिद्धांत में जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल इसप्रकार छह द्रव्य माने हैं इन्हीं को तत्व, अर्थ, पदार्थ एवं वस्तु कहते हैं, जीव द्रव्य के अस्तित्व में कोई विवाद नहीं है [चार्वाक को छोड़कर] पुद्गल दृश्यमान पदार्थ होने से सिद्ध ही है । आकाश द्रव्य का अस्तित्व एवं उसका वास्तविक लक्षण वैशेषिक मत के आकाश का खण्डन करते हुए बता दिया है, और काल द्रव्य का वास्तविक स्वरूप भी इन्हीं के काल द्रव्य का निरसन करते हुए प्रतिपादन कर चुके हैं, अब यहां पर धर्म और अधर्म द्रव्य को सिद्ध करते हैं, वे द्रव्य किस प्रमाण से सिद्ध होंगे ? इसप्रकार प्रश्न होने पर उत्तर देते हैं कि वे द्रव्य तो अनुमान प्रमाण से सिद्ध होंगे, अब उसीको बताते हैंसंपूर्ण जीव तथा पुद्गलों की एक बार में होने वाली गमन क्रियायें सर्व साधारण बाह्य निमित्त की अपेक्षा रखती हैं, [साध्य] क्योंकि ये एक साथ होने वाली गमन क्रियायें हैं [हेतु] जैसे एक तालाब के जल के आश्रय में रहने वाले अनेक मत्स्यों की गमन क्रिया एक बार में होने से एक ही साधारण बाह्य निमित्तरूप जल द्वारा होती है । इस अनुमान से धर्म द्रव्य की सिद्धि होती है । तथा सकल जीव एवं पुद्गलों की स्थिति
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