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प्रमेयकमलमार्तण्डे
सहकारिमात्रत्वेन चेत् ; तहि सकलार्थगति स्थितीनां सकृद्भवां धर्माधमौ सहकारिमात्रत्वेन साधारणं निमित्तं किन्नेष्यते ?
पृथिव्यादिरेव साधारणं निमित्तं तासाम् ; इत्यप्यसङ्गतम् ; गगनवत्तिपदार्थगतिस्थितीनां तदसम्भवात् । तहि नभः साधारणं निमित्तं तासामस्तु सर्वत्र भावात् ; इत्यप्यपेशलम् ; तस्यावगाहनिमित्तत्वप्रतिपादनात् । तस्यैकस्यैवानेककार्यनिमित्ततायाम् अनेकसर्वगतपदार्थपरिकल्पनानर्थक्यप्रस
में ही देखने वाले सकल व्यक्तियों के नाना भावों का निमित्त होता है उसी तरह धर्म अधर्म द्रव्य गति स्थिति शोल पदार्थों के गति स्थिति का क्रमशः साधारण निमित्त है ।
___ शंका-नृत्यकारिणीका नृत्य नाना भावों को उत्पन्न कराने में मात्र सहकारी कारण है ?
समाधान –तो फिर ऐसे ही सकल पदार्थों की गति-स्थिति जो कि एक बार में हो रही है उनके सहकारी कारण धर्म अधर्म द्रव्य है इसतरह से उनको साधारण निमित्तरूप से क्यों न माना जाय ? अर्थात् मानना ही चाहिये ।
शंका-द्रव्यों के गमन तथा स्थिति का साधारण निमित्त तो पृथिवी जलादि पदार्थ हैं ?
समाधान-यह बात गलत है, जो जीवादि पदार्थ आकाश में [अधर स्थित हैं उन पदार्थों को ये पृथिवी आदि पदार्थ गमनादि कराने में निमित्त कैसे हो सकेंगे, अर्थात् नहीं हो सकते ।
___ शंका-यदि ऐसी बात है तो गति और स्थितियों का साधारण निमित्त अाकाश को माना जाय क्योंकि वह तो सर्वत्र है ?
समाधान--यह कथन भी असुन्दर है, आकाश तो अवगाह देता है, उसीका वह साधारण निमित्त सिद्ध होता है।
शंका-वह एक ही आकाश द्रव्य अवगाह, गति आदि अनेक कार्यों का निमित्त माना जाय ?
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