Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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धर्माधर्मद्रव्यविचारः विस्थितित्वात्, एककुण्डाश्रयानेकबदरादिस्थितिवत् । यत्तु साधारणं निमित्तं स धर्मोऽधर्मश्च, ताभ्यां विना तद्गतिस्थितिकार्यस्यासम्भवात् ।
__ गतिस्थितिपरिणामिन एवार्थाः परस्परं तद्धेतवश्चेत् ; न; अन्योन्याश्रयानुषङ्गात्-सिद्धायां हि तिष्ठत्पदार्थेभ्यो गच्छत्पदार्थानां गतौ तेभ्यस्तिष्ठत्पदार्थानां स्थितिसिद्धिः, तत्सिद्धौ च गच्छत्पदार्थानां गतिसिद्धिरिति । साधारणनिमित्तरहिता एवाखिलार्थगतिस्थितय: प्रतिनियतस्वकारणपूर्वक त्वादिति चेत् ; कथमिदानी नर्तकीक्षणो निखिलप्रेक्षकजनानां नानातवेदनोत्पत्तौ साधारणं निमित्तम् ?
साधारण बाह्य निमित्त की अपेक्षा लेकर होती है, क्योंकि एक साथ होने वाली स्थिति है, जैसे एक कुण्ड के प्राश्रय में अनेक बेर, आंवला, आम आदि की स्थिति एक साथ है वह उस कुण्ड रूप बाह्य निमित्त की अपेक्षा लेकर होती है, जो इन जीव पुद्गलों की गति और स्थिति का निमित्त है वही क्रमशः धर्म एवं अधर्म द्रव्य है, इन दो द्रव्यों के अस्तित्व हुए बिना जीव पुद्गलों का गति स्थितिरूप कार्य होना असम्भव है । अभिप्राय यह है कि क्रियाशील पदार्थ जीव और पुद्गल हैं इनका सर्व साधारण बाह्य निमित्त यदि कोई है तो वह धर्म द्रव्य है और जो इन द्रव्यों का स्थित होने में निमित्त है वह अधर्म द्रव्य है ऐसा अनुमान से सिद्ध होता है ।
_शंका-गति और स्थिति क्रिया को करने में परिणत हुए जो पदार्थ हैं वे हो परस्पर में उस गति स्थिति के निमित्त हुआ करते हैं ?
समाधान-ऐसा माने तो अन्योन्याश्रय होगा-ठहरते हुए पदार्थों से गमन करते हुए पदार्थों की गति सिद्ध होने पर उनसे ठहरते हुए पदार्थों की स्थिति सिद्ध होगी, और उस स्थिति के सिद्ध होने पर गमन करते हुए पदार्थों की स्थिति सिद्ध हो पायेगी । इस तरह दोनों ही प्रसिद्ध रह जायेंगे ।
शंका-संपूर्ण पदार्थों की गति एवं स्थिति जो होती है वह साधारण निमित्त से रहित हो होतो है क्योंकि वह अपने अपने प्रतिनियत निश्चित कारण से होती है ?
समाधान-यह शंका असत् है, नृत्यकारिणी नृत्य कर रही है वह नृत्य रूप पर्याय या अवस्था सकल प्रेक्षक लोगों के नाना तरह के काम भाव आदि की उत्पत्ति कराने में साधारण निमित्त है । वह किस प्रकार है ? जिसतरह एक ही नृत्य एक बार
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