Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे
भावे निर्विकल्पकदर्शनात् सन्निकर्षाच्चाविशेषप्रसङ्गतः प्रामाण्यं न स्यात् । न च धर्ममिणोः सर्वथा भेदोऽभेदो वा; तद्भावविरोधानुषङ्गात् तदन्यतरवदन्तिरवच्च ।
प्रथाज्ञाननिवृत्तिर्ज्ञानमेवेत्यनयोः सामर्थ्य सिद्धत्वान्यथानुपपत्तेरभेदः; तन्न; अस्याऽविरुद्धत्वात् । सामर्थ्य सिद्धत्वं हि भेदे सत्येवोपलब्धं निमन्त्रणे प्राकारणवत् । कथं चैवं वादिनो हेतावन्वयव्यतिरेकधर्मयोर्भेदः सिध्येत् ? 'साध्यसद्भावेऽस्तित्वमेव हि साध्याभावे हेतो स्तित्वम्' इत्यनयोरपि सामर्थ्यसिद्धत्वाविशेषात् ।
को दर नहीं करेगा तो अप्रमाण हो जायगा। तथा अज्ञान निवृत्ति प्रमाण का स्वभाव या धर्म है, धर्म धर्मी से सर्वथा भिन्न या अभिन्न नहीं होता, यदि धर्म धर्मी का परस्पर में सर्वथा भेद अथवा सर्वथा अभेद स्वीकार करेंगे तो यह धर्म इसी धर्म का है ऐसा तदभाव नहीं हो सकेगा, जिस तरह केवल धर्म या धर्मी में तद्भाव नहीं बनता अथवा अर्थान्तरभूत दो पदार्थों का तद्भाव नहीं होता अर्थात् धर्मी से धर्म को सर्वथा अभिन्न माने तो दोनों में से एक ही रहेगा क्योंकि वे सर्वथा अभिन्न हैं एवं धर्मी से धर्म सर्वथा भिन्न माने तो इस धर्मी का यह धर्म है ऐसा कथन नहीं हो सकेगा।
शंका-अज्ञाननिवत्ति ज्ञान ही है इसलिये इनमें सामर्थ्य सिद्धत्व की अन्यथानुपपत्ति से अभेद ही सिद्ध होता है, अर्थात्-अज्ञाननिवृत्ति की अन्यथानुपपत्ति से ज्ञान सिद्धि और ज्ञान की अन्यथानुपपत्ति से अज्ञाननिवृत्ति की सिद्धि होती है। अतः इनमें अभेद है।
समाधान-ऐसी बात नहीं कहना, ज्ञान की सामर्थ्य से ही प्रज्ञान निवृत्ति की सिद्धि हो जाती है तो भी इनमें भेद मानना अविरुद्ध है। क्योंकि सामर्थ्य सिद्धपना भेद होने पर ही देखने में आता है जैसे निमन्त्रण में आह्वानन सामर्थ्य सिद्ध है। दूसरी बात यह है कि यदि सामर्थ्य सिद्धत्व होने से अज्ञान निवृत्ति और ज्ञान इनको अभेदरूप ही मानेंगे तो आपके यहां हेतु में अन्वय धर्म और व्यतिरेक धर्म में भेद किस प्रकार सिद्ध होगा ? अर्थात् नहीं होगा, क्योंकि साध्य के सद्भाव में होना ही हेतु का साध्य के अभाव में नहीं होना है, हेतुका साध्य में जो अस्तित्व है वही साध्य के अभाव में नास्तित्व है इसतरह ये दोनों सामर्थ्य सिद्ध हैं कोई विशेषता नहीं साध्य के होने पर होना अन्वयी हेतु है अथवा हेतुका अन्वय धर्म है और साध्य के नहीं होने पर नहीं
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