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प्रमेय कमलमार्त्तण्डे
सत्त्वान्न सत्तासमवायः; श्रन्योन्याश्रयानुषङ्गात प्रसत्वे हि तेषां सत्तासमवायविरहः, तद्विरहाच्चा सत्त्वमिति । न च सत्तासमवायः सत्त्वलक्षणं युक्तमर्थान्तरत्वात् । न ह्यर्थान्तरमर्थान्तरस्य स्वरूपम् ; अतिप्रसङ्गादर्थान्तरत्वहानिप्रसङ्गाच्च ।
किञ्च, सत्तासमवायात्पदार्थानां सत्त्वे तयोः कुतः सत्त्वम् ? असत्संबन्धात्सत्त्वे प्रतिप्रसङ्गात् । सत्तासमवायान्तराच्चेत्; अनवस्था । स्वतश्चेत्; पदार्थानामपि तत्स्वत एवास्तु कि सत्तासमवायेन ?
यदप्यभिहितम् - प्रग्नेरुष्णतावदित्यादि; तदप्यभिधानमात्रम् ; यतः प्रत्यक्षसिद्धे पदार्थ स्वभावे स्वभावैरुत्तरं वक्त युक्तम् । न च 'समवायस्य स्वतः सम्बन्धत्वं संयोगादीनां तु तस्मात्' इत्यध्यक्ष
प्रतिव्यापि दोष युक्त भी है, क्योंकि यह लक्षण श्राकाश पुष्पादि में भी पाया जाता है तुम कहो कि आकाश पुष्पादि असत्वरूप हैं अतः उनमें सत्ता का समवाय नहीं होता, सो यह कथन अन्योन्याश्रय दोष युक्त है - श्राकाश पुष्पादिका प्रसत्व होने से सत्ता समवाय नहीं होता और सत्ता समवाय नहीं होने से असत्व होता है इसतरह एक की भी सिद्धि नहीं होती । सत्ता का समवाय सत्व है ऐसा सत्व का लक्षण युक्त नहीं, क्योंकि यह पदार्थ से भिन्न है । अर्थान्तर अर्थान्तर का स्वरूप नहीं हो सकता, अन्यथा अतिप्रसंग होगा - घट का स्वरूप पट भी होवेगा । तथा प्रर्थान्तरत्वके हानि का प्रसंग भी होगा, [ भिन्न अर्थ भिन्न अर्थ का स्वरूप है तो दोनों एक स्वरूप वाले बन जायेंगे और इसतरह भिन्न भिन्न अर्थों का अस्तित्व ही समाप्त होवेगा ] ।
तथा यह प्रश्न होता है कि द्रव्यादि पदार्थों का सत्व तो सत्ता समवाय से होता है किन्तु सत्ता में और समवाय में सत्व किससे होता है ? असत् सम्बन्ध से सत्व होना मानें तो अतिप्रसंग होगा, अर्थात् असत् रूप सत्ता सम्बन्ध से सत्ता में सत्व श्राता है तो आकाश पुष्पादि में भी सत्व प्रायेगा । अन्य किसी सत्ता समवाय से सत्तादि में सत्व आना माने तो अनवस्था है । सत्ता और समवाय में स्वतः सत्व है ऐसा कहो तो द्रव्य गुणादि पदार्थों में भी स्वतः सत्व होवे फिर सत्ता समवाय से क्या प्रयोजन है ?
समवाय की सिद्धि करते समय वैशेषिक ने कहा था कि अग्नि की उष्णता क्योंकि प्रत्यक्ष सिद्ध पदार्थ के समवाय में स्वतः सम्बन्धपना
समान समवाय सम्बन्ध होता है, इत्यादि यह प्रयुक्त है स्वभाव में स्वभाव द्वारा उत्तर कहना युक्त है किन्तु
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