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समवायपदार्थविचारः
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कल्पितपदार्थानां विचार्यमाणानां स्वरूपाव्यवस्थितेः कथं 'षडेव पदार्थाः' इत्यवधारणं घटते स्वरूपासिद्धौ संख्यासिद्धेरभावात् ?
__ प्रमाणप्रमेयसंशयप्रयोजनदृष्टान्तसिद्धान्तावयवतर्कनिर्णय बादजल्पवितण्डाहेत्वाभासच्छल [जाति] निग्रहस्थानानां नैयायिकाभ्युपगतषोडशपदार्थानां षट्पदार्थाधिक्येन व्यवस्थानाच्च । न च
पृथक् दो वस्तुओं का अवस्थान नहीं रहता उनमें उपरितनरूप से प्रतीति नहीं होती ऐसा कहना असत् है, क्योंकि इस तरह युत सिद्धत्व को उपरितन प्रतीति का कारण माने तो ऊर्ध्वस्थित बांसादि में खड़े रखे हुए बांस, लकड़ी आदि पदार्थ में युत सिद्धत्व मानना होगा क्योंकि उसमें उपरितनरूप से प्रतीति हो रही है, तथा दूध और पानी का संबंध होने पर उपरितन प्रतीति होनी चाहिये ? क्योंकि इन दूध पानी का युतसिद्ध संबंध है ? किन्तु ऐसा प्रतिभास नहीं होता, अतः उपरितन प्रतीति का कारण युतसिद्धत्व है ऐसा कहना अयुक्त है । इसप्रकार परवादी-वैशेषिक द्वारा परिकल्पित किये गये पदार्थों के विषय में विचार करने पर उनका स्वरूप सिद्ध नहीं होता है, फिर किस प्रकार छह ही पदार्थ होते हैं ऐसा नियम सिद्ध हो सकता है ? जिनका स्वरूप ही प्रसिद्ध है उनकी गणना प्रसिद्ध होना स्वाभाविक है ।
नैयायिक छह पदार्थों से भी अधिक पदार्थ मानते हैं, उनके मत में प्रमाण, प्रमेय, संशय, प्रयोजन, दृष्टांत, सिद्धांत, अवयव, तर्क, निर्णय, वाद, जल्प, वितण्डा, हेत्वाभास, छल, जाति, निग्रह स्थान, इसप्रकार सोलह पदार्थ स्वीकार किये हैं । इन सोलह पदार्थों को द्रव्यादि छह पदार्थों में अंतर्भूत कर लेने पर छह से अधिक संख्या सिद्ध नहीं होती ऐसा वैशेषिक का कहना भी असत है। यदि नैयायिक के सोलह पदार्थों को अपने द्रव्यादि छह पदार्थों में अन्तर्भूत कर सकते हैं, तो, उनके संक्षिप्तरूप से माने गये प्रमाण और प्रमेय इन दो पदार्थों में द्रव्यादि छह पदार्थों को भी अन्तर्भूत कर सकते हैं। अतः पदार्थों की छह संख्या भी सिद्ध नहीं होती।
वैशेषिक-प्रमाण और प्रमेय में छह पदार्थों का अन्तर्भाव हो सकता है किंतु अवान्तर भिन्न भिन्न लक्षण होने के कारण एवं प्रयोजन होने के कारण द्रव्यादि छह पदार्थ ही व्यवस्थित किये जाते हैं ?
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