Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे समवायस्यैकत्वं सिध्यति; गोत्वादिसामान्येषु षट्पदार्थेषु चानुगतस्यैकत्वस्याभावेप्यनुगतप्रत्ययप्रतीतेः।
'सत्तावत्' इति दृष्टान्तोपि साध्यसाधन विकलः; सर्वथैकत्वस्य सत्प्रत्ययाविशेषस्य चासिद्धत्वात् । सर्वथैकत्वे हि सत्तायाः ‘पटः सन्' इति प्रत्ययोत्पत्तौ सर्वथा सत्तायाः प्रतीत्यनुषङ्गात् क्वचित् सत्तासंदेहो न स्यात् । तस्याः सर्वथा प्रतीतावपि तद्विशेष्यार्थानामप्रतीतेः क्वचित्सतासंदेहे पटविशेषणत्वम् तस्या मन्यदन्यदर्थान्तरविशेषणत्वम् इत्यायातमनेकरूपत्वं तस्याः।
प्रत्यय की प्रतीति होती है । अर्थात् घटों में घटत्वरूप होने वाला अनुगत प्रत्यय और गायों में गोत्वरूप होने वाला अनुगतप्रत्यय भिन्न भिन्न है, एकरूप नहीं तो भी अनुगत की इनमें प्रतीति होती है, इसीतरह समवाय अनुगत प्रत्यय कराता है तो भी अनेक है । इसप्रकार अनुगत प्रत्यय का कारण होने से समवाय एक पदार्थ है ऐसा कहना अशक्य है।
जिसतरह सत्ता एक होती है उसतरह समवाय की संख्या एक है, ऐसा दृष्टांत दिया था वह साध्य और साधन दोनों से विकल है, क्योंकि सत्ता और सत्प्रत्यय सर्वथा एकरूप हो ऐसा सिद्ध नहीं होता, यदि सत्ता सर्वथा एक है तो “पटः सन्” पट सत् है ऐसा प्रतिभास उत्पन्न होते ही सब प्रकार की सत्ता प्रतीति में आने से किसी स्थान पर भी सत्ता [अस्तित्व] का संशय नहीं रहेगा। [एक की सत्ता जानते ही सबकी सत्ता निश्चित होवेगी और फिर किसी पदार्थ के अस्तित्व में संशय नहीं रहेगा कि अमुक पदार्थ है या नहीं इत्यादि ] ।
वैशेषिक-सत्ता एक होने से एकत्र प्रतीत होने पर सब प्रकार की सत्ता तो प्रतीत हो जाती है किन्तु सत्ता के विशेष्यभूत पदार्थों के प्रतीत नहीं होने से कहीं पर सत्ता के विषय में संदेह हो जाया करता है ?
जैन-ठीक है, इसतरह प्रतिपादन करे तो भी सत्ता या सत्ता के समान समवाय इन दोनों में अनेकपना ही सिद्ध होता है, “पटः सन्" वस्त्र सत् है इसप्रकार का सत्ता का जो पट संबंधी विशेषण है वह अन्य है और अन्य घट आदि पदार्थ संबंधी विशेषण हैं वे अन्य हैं इसतरह अनेक विशेषणों के निमित्त से उस सत्ता के अनेकपना ही सिद्ध होता है।
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