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प्रमेयकमलमार्तण्डे
यत्र तु 'समवायः' इत्येतावाननुभवस्तत्र किं विशेषणमिति चिन्त्यताम् ? अथ विशेषणाभावाने दं विशेष्यज्ञानम् ; तो न्यस्य विशेष्यस्यात्रासंभवाद्विशेषणज्ञानमपि तन्मा भूत् । न चैतद्य क्तम् । कथं चैवं 'पटः' इति प्रत्ययो विशेष्य: स्यात् विशेषणाभावाविशेषात् ? अथात्र पटत्वं विशेषणम्, तहि 'समवायः' इति प्रत्यये कि विशेषणम् ? न तावत्समवायत्वम् ; अनभ्युपगमात् ।
अथ येन सता विशिष्टः प्रत्ययो जायते तद्विशेषणम्, तत्र 'समवायः' इति प्रत्ययोत्पादे समवायत्वसामान्यस्यानभ्युपगमात्, द्रव्यादेश्चाप्रतिभासनाददृष्टस्यैव विशेषणत्वमिति ; तन्न; यत: किं येन सता
वैशेषिक- “समवाय है" इस तरह का जो ज्ञान होता है उसमें विशेष ग का प्रभाव होने से यह विशेष्य ज्ञान नहीं है। अर्थात् 'समवाय है' इस ज्ञान में विशेषण नहीं होने से विशेष्य प्रत्यय का अभाव है ऐसा मानना चाहिये ।
जैन-तो फिर यहां समवायी प्रकरण में अन्य विशेष्य का अभाव होने से विशेषण ज्ञान भी मत होवे । अर्थात् विशेषण नहीं होने से विशेष्य ज्ञान का प्रभाव कर सकते हैं तो विशेष्य के नहीं होने से विशेषण [समवाय] के ज्ञान का भी प्रभाव कर सकते हैं। किन्तु यह प्रयुक्त है। विशेषण रहित विशेष्य और विशेष्य रहित विशेषण प्रतीत नहीं होता ऐसा भी नहीं कहना । यदि ऐसा मानें तो "पट है" इस प्रकार का विशेष्य प्रत्यय किसप्रकार हो सकेगा? क्योंकि यहां पर भी समानरूप से विशेषण का अभाव है ? .
वैशेषिक- "पट है" इसप्रकार के प्रतिभास में पटत्व को विशेषण मानते हैं।
जैन-तो फिर “समवाय है" इस प्रतिभास में किसको विशेषणपना माना जाय ? समवायत्व को मानना तो शक्य नहीं, क्योंकि आपने समवाय में समवायत्व नहीं माना है।
वैशेषिक-जिसके होने पर या जिसके द्वारा विशिष्ट प्रतिभास होता है वह विशेषण कहलाता है, अब जो “समवाय है" ऐसे प्रत्यय का उत्पाद होता है उसमें प्रथम तो बात यह है कि हम लोग समवाय में समवायत्व सामान्य को स्वीकार नहीं करते, तथा दूसरी बात यह है कि उपर्युक्त प्रत्यय में द्रव्यादिक तो प्रतीत होते नहीं, अतः इस प्रत्यय में अदृष्ट को ही विशेषणपना सिद्ध होता है । अर्थात् “समवाय है" इस प्रत्यय का विशेषण अदृष्ट है, ऐसा हमारा कहना है ।
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