Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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समवायपदार्थ विचार:
४६१
वा तेनैव कार्यत्वादिहेतोर्व्यभिचारः । ननु महेश्वरोऽसम्बन्धत्वात्कथं सम्बन्धबुद्धेः कारणमिति चेत् ? प्रभुशक्त' रचिन्त्यत्वात् । यो हीश्वरस्त्रैलोक्य कार्यकरणसमर्थः स कथं 'पटे रूपादयः' इति बुद्धि न विदध्यात् ? प्रभुः खलु यदेवेच्छति तत्करोति, अन्यथा प्रभुत्वमेवास्य हीयते । नच 'इह कुण्डे दधि' इत्यादिप्रत्यये सम्बन्धपूर्वकत्वोपलम्भादत्रापि तत्पूर्वकत्वस्यैव सिद्धिः ; तत्रापीश्वर हेतुकत्वं कार्यस्येच्छतस्तच्चोद्यानिवृत्तेः । संयोगश्चार्थान्तरभूतस्तन्निमित्तत्वेनात्राप्यसिद्धः; तस्यासिद्धस्वरूपत्वात् ।
अथवा आप वैशेषिक को इह प्रत्यय का कारण महेश्वर मानना होगा, महेश्वर हेतुक मानने पर कदाचित् होने में विरोध है । यदि इहेदं प्रत्यय - ईश्वर हेतुक नहीं माने तो ईश्वर सिद्धि में दिये गये कार्यत्व, सन्निवेश विशिष्टत्वादि हेतु उसीसे व्यभिचारी बन जायेंगे, अर्थात् जो कदाचित् होता है - कार्यरूप होता है वह ईश्वर कृत होता है ऐसा आपका हटाग्रह है, पृथ्वी, पर्वत ग्रादि कार्य होने से बुद्धिमान द्वारा निर्मित है ऐसा कार्यत्व का संबंध महेश्वर से ही स्थापित किया है, जो भी कार्य हो वह महेश्वर कृत है अतः यहां प्रकरण में इहेदं प्रत्यय भी कदाचित् होने से कार्य है इसलिये महेश्वर द्वारा ही होना चाहिये, किन्तु इहेदं प्रत्यय का हेतु समवाय है ऐसा आप कह रहे सो कार्य होकर भी ईश्वर कृत नहीं होने से कार्यत्व हेतु व्यभिचरित ठहरता है ।
वैशेषिक – कार्यत्व हेतु व्यभिचरित नहीं होगा, महेश्वर संबंधरूप पदार्थ नहीं है फिर वह संबंध बुद्धि का - इहेदं प्रत्यय का कारण किस प्रकार हो सकता है । अर्थात् नहीं हो सकता ।
जैन - प्रभु की शक्ति तो अचिन्त्य है । जो तीन लोक के कार्यों को करने में समर्थ है वह "यहां वस्त्र में रूपादिगुण हैं" इत्यादि बुद्धि को कैसे नहीं करा सकता, अवश्य करा सकता है, प्रभु तो प्रभु ही [ समर्थ ] है वह जो चाहे उसे कर सकता है अन्यथा तो उसका प्रभुपना ही समाप्त होता है । यहां कुण्डे में दही है इत्यादि प्रत्यय मात्र संयोग संबंध के कारण होते हैं ऐसे ही "यहां तन्तुम्रों में पट है" इत्यादि प्रत्यय समवाय संबंध के कारण होते हैं ऐसा कहना भी ठीक नहीं, "यहां कुण्डे में दही है" इत्यादि इह प्रत्यय भी ईश्वर हेतुक मानने होंगे, क्योंकि वे कार्य हैं, जो कदाचित् होता है वह कार्य कहलाता है और कार्य ईश्वर कृत होता है इत्यादि वही पूर्वोक्त प्रश्नोत्तर यहां भी समझ लेना चाहिए | अभिप्राय यह है कि प्राप वैशेषिक कार्यत्व हेतु से सृष्टिकर्ता
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