________________
प्रमेय कमलमार्तण्डे इत्यप्युद्योतकरस्य मनोरथमात्रम् ; तथाहि-यत्तावदुक्तम्-निविशिष्टत्वाद्बीजादय: सर्वदैवाङ कुरं कुर्यु।; तदयुक्तम् ; तेषां निविशिष्टत्वासिद्धः, सकल भावानां परिगामित्वात् । ततो विशिष्टपरिणामापन्नानामेव तेषां जनकत्वं नान्यथा ।
यच्चोक्तम्-'सर्वदा कार्यानारम्भात्' इत्यादि ; तत्रापि कारणमात्रसापेक्षत्वसाधने सिद्धसाध्यता, अस्माभिरपि विशिष्टपरिणामापेक्षाणां तेषां कार्यकारित्वाभ्युपगमात् । अथाभिमतसंयोगाख्यपदार्थान्तरसापेक्षत्वं साध्यते; तदानेन हेतोरन्वया सिद्धेरनैकान्तिकता, तमन्तरेणापि संभवाविरोधात् । दृष्टां
जैन- यह उद्योतकर ग्रन्थकार का कथन मनोरथ मात्र है। सबसे प्रथम जो कहा कि गेहूं आदि बीज सदा निविशिष्ट रहते हैं तो हमेशा ही अंकर आदि कार्यों को करेंगे इत्यादि, सो यह कथन गलत है, गेहूं आदि बीजों की निविशिष्टता प्रसिद्ध है, क्योंकि हमारे यहां संपूर्ण पदार्थों को परिणमन युक्त माना है । अत: विशिष्ट परिणाम युक्त ही गेहूं आदि बीज अंकुरादि कार्यों को उत्पन्न करते हैं अन्यथा नहीं करते ऐसा सिद्ध होता है ।
और भी जो कहा कि कार्य का अनारंभ देखकर कारणान्तर की अपेक्षा सिद्ध होती है, इत्यादि, सो उस अनुमान द्वारा यदि पाप कारण मात्र की अपेक्षा सिद्ध करते हैं तो सिद्ध साध्यता है, क्योंकि हम जैन भी विशिष्ट परिणाम की अपेक्षा लेकर गेहूं
आदि बीज अंकुरादि कार्यों को करते हैं ऐसा मानते हैं। और यदि ग्राप वैशेषिक अपने इष्ट संयोग नामा पदार्थान्तर की अपेक्षा अंकुरादि कार्य को उत्पत्ति में हुया करती है ऐसा उस अनुमान द्वारा सिद्ध करना चाहते हैं तब हेतु का साध्य के साथ अविनाभाव सिद्ध नहीं होने से, अनैकान्तिक दोष पाता है। अर्थात्-संयोग पृथक् पदार्थ है [साध्य ] क्योंकि यह पृथक पदार्थ नहीं होता तो बोजादिक निविशिष्ट होकर सदा ही अंकुरादि कार्य को करते किन्तु सदा कार्य नहीं होता अत: संयोगरूप कारण की अपेक्षा से अंकुरादि कार्य होता है ऐसा सिद्ध होता है, [हेतु] सो इस अनुमान का हेतु साध्य के बिना भी रहता है । उक्त अनुमान में जो दृष्टांत दिया था कि-जिसप्रकार घट के करने में मिट्टी, दण्ड आदि पदार्थ कुम्भकार के संयोगरूप कारण की अपेक्षा रखते है उसप्रकार गेहूं आदि बीज अंकुर की उत्पत्ति में संयोगरूप कारण की अपेक्षा रखते हैं, यह दृष्टांत साध्य से रहित है, क्योंकि यद्यपि मिट्टी आदिक घट के करने में कभकार
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org