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समवायपदार्थविचारः
४४३ चानुगतप्रत्ययजनकत्वेन सामान्यादस्याऽभेद:; भिन्नलक्षणयोगित्वात् ।
यद्वा, 'समवायीनि द्रव्याणि' इत्यादिप्रत्ययो विशेषणपूर्वको विशेष्यप्रत्ययत्वाहण्डीत्यादिप्रत्ययवत्' इत्यतः समवायसिद्धिः । न चान्येषामत्रानुराग : सम्भवति । किहि ? समवायस्यैव । अतः स एव विशेषणम् । अप्रतिपन्नसमयस्य 'समवायो' इतिप्रतिभासाभावादस्याऽविशेषणत्वम्, दण्डादावपि
गुण मात्र गुणत्व का अभिव्यंजक है ऐसा सिद्ध होता है। सामान्य भी अनुगत प्रत्यय को उत्पन्न करता है और समवाय भी अनुगत प्रत्यय को उत्पन्न करता है, अतः सामान्य और समवाय में भेद नहीं है ऐसी अाशंका भी नहीं करना, अनुगतप्रत्यय को समान रूप से उत्पन्न करते हुए भी इनमें लक्षण भेद पाया जाता है, अबाधित अनुगत प्रत्यय को उत्पन्न करना सामान्य का लक्षण है, और अयुतसिद्ध एवं आधार-आधेयभूत पदार्थों में इहेदं प्रत्यय को उत्पन्न करनेवाला जो सम्बन्ध है वह समवाय का लक्षण है, इस प्रकार पृथक् लक्षण होने के कारण समवायनामा पदार्थ पृथक् है और सामान्यनामा पदार्थ पृथक् है ऐसा हम मानते हैं।
समवाय को सिद्ध करनेवाला और भी अनुमान प्रमाण है कि द्रव्य समवायी होते हैं, ऐसा जो ज्ञान होता है वह विशेषणपूर्वक होता है, क्योंकि इसमें विशेष्य का प्रत्ययपना है [विशेष्य का ज्ञान है] जैसे "दण्डावाला है इत्यादि ज्ञान दण्ड विशेषण पूर्वक होते हैं । इस तरह द्रव्य के समवायी विशेषण से समवायनामा पदार्थ की सिद्धि होती है। यह जो द्रव्यों का विशेषण है वह अन्य किसी कारण से नहीं होता किन्तु समवाय के कारण से ही होता है अर्थात् कोई कहे कि समवायीनि द्रव्याणि इस वचन प्रयोग में तादात्म्यादि संबंध के कारण समवायी विशेषण का प्रयोग हो जायगा सो बात नहीं, यह विशेषण तो समवाय के कारण ही होता है, इसप्रकार समवाय संबंध की सिद्धि होती है।
शंका-जिसने संकेत को नहीं जाना है ऐसे पुरुष को "द्रव्य समवायी है" ऐसा प्रतिभास नहीं होता है अतः समवाय का विशेषणपना प्रसिद्ध है।
__समाधान-ऐसी बात तो दण्डादि विशेषण में भी है, जिसने संकेत को नहीं जाना है कि "जिसके हाथ में दण्डा हो उस पुरुष को दण्डी कहना" वह व्यक्ति दण्डा वाला है ऐसा विशेषणपूर्वक प्रत्यय को नहीं समझ सकता, किन्तु इतने मात्र से दण्डे
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