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समवायपदार्थविचारः
४४६ ननु लक्षणं विद्यमानस्यार्थस्यान्यतो भेदेनावस्थापकं न तु सद्भावकारकम्, तेनायमदोषश्चेत्, ननु ज्ञापकपक्षे सुतरामितरेतराश्रयत्वम् । तथाहि-नाऽज्ञातया युत सिद्धया समवायो ज्ञातु शक्यते, अनधिगतश्चासो न युतसिद्धिमवस्थापयितुमुत्सहते इति । न चातो लक्षणात्समवायः सिद्धयति व्यभि
वैशेषिक-लक्षण उसे कहते हैं कि जो विद्यमान पदार्थ का अन्य से भेद स्थापित करे, लक्षण का कार्य यह नहीं है कि वह लक्ष्य के सद्भाव को करे, अतः अन्योन्याश्रय दोष नहीं आता।
जैन-यदि आपको लक्षण के विषय में ज्ञापक पक्ष मात्र रखना है अर्थात् लक्षण वस्तु का ज्ञापक मात्र है ऐसा कहना है तो अन्योन्याश्रय दोष और भी विशेष रूप से आता है। आगे इसी को स्पष्ट करते हैं-अज्ञात युतसिद्धि द्वारा समवाय ज्ञात होना अशक्य है, और यह अज्ञात समवाय युतसिद्धि को स्थापित करने के लिये समर्थ नहीं हो सकता है।
भावार्थ-वैशेषिक के यहां युतसिद्धि का लक्षण पृथगाश्रयवृत्तित्व किया है और अपृथक् आश्रयवृत्तित्व अयुतसिद्धि का लक्षण किया है, अर्थात् पृथक्-पृथक् जिनका आश्रय है ऐसे पृथक् प्राश्रयों में रहने वाले दो पदार्थों को युतसिद्ध कहते हैं जैसे घट और पट हैं इनका भिन्न भिन्न प्राश्रय या प्राधार है अतः इन्हें युतसिद्ध पदार्थ कहते हैं, युतसिद्ध पदार्थों में समवाय सम्बन्ध नहीं होता। अयुतसिद्ध पदार्थ वे हैं जिनका अपथक-अभिन्न-एक ही पाश्रय हो, ऐसे अयुतसिद्ध पदार्थों में समवाय संबंध होता है जैसे तन्तु और वस्त्र इनको अयुतसिद्ध बतलाकर उनमें समवाय संबंध होता है ऐसा वैशेषिक का कहना है किन्तु यह कथन उन्हींके सिद्धांत से बाधित होता है, क्योंकि इन्होंने तन्तु और वस्त्र का अपृथक् आश्रय नहीं माना है अपितु तन्तुओं का प्राश्रय तो तन्तुओं के छोटे छोटे अवयव जो कि तन्तु बनने के पहले कपास के रोयें होते हैं उन्हें माना है, और वस्त्र का प्राश्रय तन्तु हैं ऐसा माना है, अतः अपृथक अाश्रयपना होना अयुतसिद्धत्व है और अयुतसिद्धों में समवाय सम्बन्ध होता है ऐसा समवाय का लक्षण बाधित होता है। तथा अपृथक् अर्थात् एक ही आश्रय में जो हो उन्हें अयुतसिद्ध कहते हैं ऐसा अयुतसिद्धत्व का लक्षण करने पर गुण, कर्म और सामान्य इनको अयुतसिद्ध कहना होगा । क्योंकि ये तीनों एक द्रव्य के प्राश्रय में रहते हैं, और यदि ये अयुतसिद्ध हैं तो इनका परस्पर में समवाय सम्बन्ध भी स्वीकार करना होगा। किन्तु यह परवादी को इष्ट नहीं है । पृथगाश्रयवृत्ति स्वरूप युतसिद्धि है और ऐसी युत
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