Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे यत्तूक्तम्-प्रत्यक्षत एव समवायः प्रतीयत इत्यादि; तदयुक्तम् ; असाधारणस्वरूपत्वे हि सिद्धे सिध्येदर्थानां प्रत्यक्षता पृथुबुध्नोदराद्याकार घटादिवत् । न चास्य तत्सिद्धम् । तद्धि किमयुतसिद्धसम्बन्धत्वम्, सम्बन्धमात्रं वा ? न तावदयुतसिद्धसम्बन्धत्वम् ; सर्वैरप्रतीयमानत्वात् । यत्पुनर्यस्य स्वरूपं तत्तेनैव स्वरूपेण सर्वस्यापि प्रतिभासते यथा पृथुबुध्नोदराद्याकारतया घट इति । न चैकस्य सामान्यात्मक स्वरूपं युक्तम् ; समानानामभावे सामान्याभावाद्गगने गगनत्ववत् । नापि सम्बन्धमात्रं समवायस्थासाधारणं स्वरूपम् ; संयोगादावपि सम्भवात् ।
किञ्च, तद्रूपतयासो सम्बन्धबुद्धौ प्रतिभासेत, इहेति प्रत्यये वा, समवाय इत्यनुभवे वा ? यदि सम्बन्धबुद्धौ, कोयं सम्बन्धो नाम-किं सम्बन्धत्वजातियुक्तः सम्बन्धः, अनेकोपादानजनिता वा, अनेका
वैशेषिक ने कहा कि समवाय की प्रत्यक्ष से प्रतीति होती है, इत्यादि, वह कथन तो प्रयुक्त है, जब तक पदार्थों का असाधारण स्वरूप सिद्ध नहीं हो जाता तब तक उसको प्रत्यक्ष प्रतीति हो नहीं सकती, असाधारण स्वरूप सिद्ध होने पर ही वस्तु की प्रत्यक्षता सिद्ध होगी, जैसे पृथु-मोटा बुध्न-गोल मटोल, फैला हुआ, नीचे से समत्व रहित, ऊपर की ओर उठा हुआ इत्यादि घट का आकार या असाधारण स्वरूप सिद्ध होने पर ही घट की प्रत्यक्षता हुआ करती है, ऐसा असाधारण स्वरूप समवाय का सिद्ध नहीं होता । समवाय का असाधारण स्वरूप क्या है अयुतसिद्ध संबंधत्व समवाय का असाधारण स्वरूप है अथवा सम्बन्ध मात्र है ? अयुतसिद्ध सम्बन्धत्व समवाय का असाधारण स्वरूप है ऐसा कहना ठीक नहीं क्योंकि यह स्वरूप सभी को प्रतिभासित नहीं होता है, जो जिसका स्वरूप होता है वह उसी स्वरूप द्वारा सभी वादी प्रतिवादी को प्रतिभासित हो जाता है, जैसे पृथु बुध्नादि आकार घट का असाधारण स्वरूप है अतः वह सभी को उस स्वरूप से प्रतीति होता है, तथा समवाय को आप लोग एकरूप ही मानते हैं, जो एक है उसमें सामान्यात्मक स्वरूप नहीं रह सकता, क्योंकि समान वस्तुओं के अभाव में सामान्य नहीं होता, जैसे आकाश के अभाव में आकाशत्व नहीं होता है । सम्बन्धमात्र समवाय का असाधारण स्वरूप है ऐसा कहना भी ठीक नहीं, क्योंकि यह स्वरूप संयोग आदि में भी रहता है ।
किञ्च, संबंधमात्र समवाय का स्वरूप माना जाय तो संबंधत्व की रूपता से संबंध बुद्धि में प्रतिभासित होगा कि "इह इति" प्रत्यय में प्रतिभासित होगा, अथवा "समवाय" इसप्रकार के अनुभव में प्रतिभासित होगा ? संबंधबुद्धि में प्रतिभासित होता
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