Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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क्षणभंगवाद:
नापि कृतकत्वात्; उक्तप्रकारेण क्षणिके कार्यकारणभावप्रतिषेधतः कृतकस्याऽसिद्धस्वरूपत्वेन तदवगति प्रत्यनङ्गत्वात् । तलः प्रतोत्यनुरोधेन स्थिरः स्थूलः साधारणस्वभावश्च
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कृतकत्व नामा हेतु से पदार्थों के क्षणिकत्व को सिद्ध करे तो वे ही पूर्वोक्त दोष आयेंगे, क्षणिक पदार्थ में कार्य कारण भाव ही सिद्ध नहीं होता है ऐसा अभी बहुत कह दिया है, इसी कथन से कृतकत्व हेतु भी प्रसिद्ध दोष युक्त है यह निश्चय होता है, और जो प्रसिद्ध है वह अन्य के सिद्धि का हेतु या ज्ञान का हेतु होना शक्य ही है । इसलिये पदार्थ की जैसे प्रतीति आती है उस प्रतीति के अनुसार पदार्थों की व्यवस्था करनी चाहिये, प्रतीति में स्थिर स्थूल, साधारण [ सदृश परिणाम ] स्वभाव वाले पदार्थ आ रहे हैं, अतः वैसे ही स्वीकार करना चाहिये ।
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विशेषार्थ - जगत में घट, पट, आत्मा, पृथिवी, वायु प्रादि यावन्मात्र पदार्थ हैं वे सभी सामान्य विशेषात्मक होते हैं, सामान्य हो चाहे विशेष, वस्तु में दोनों स्वतः सिद्ध ही हैं, ऊपर से किसी कारण द्वारा संबंधित नहीं किये हैं । अद्वैतवादी पदार्थ को सर्वथा सामान्य धर्म वाला ही मानते हैं । उनकी दृष्टि से वस्तुओं का प्रतिनियत वैशिष्ट्य मात्र काल्पनिक है, यहां तक कि उनमें चेतन अचेतन कृत विशेष भी नहीं है । बौद्ध वस्तु को सर्वथा विशेषात्मक ही प्रतिपादित करते हैं । इनका मंतव्य पूर्व वादी से सर्वथा उलटा है गायों में सफेद, कृष्ण, खण्ड, मुण्ड आदि को छोड़कर और कोई सामान्य धर्म नहीं है ऐसा इनका कहना है । नैयायिक, वैशेषिक वस्तु में दोनों धर्म मानते हैं किन्तु वे पदार्थ की उत्पत्ति निर्गुणात्मक मानते हैं, अर्थात् पदार्थ प्रथम क्षण में निर्गुण ही उत्पन्न होते हैं और उनमें समवाय संबंध फिर गुणों का संयोजन करता है, गो व्यक्तियों में जो सास्नादि सामान्य धर्म है वह निजी नहीं अपितु समवाय से संयुक्त है, वह सामान्य, एक व्यापक एवं नित्य है, इत्यादि सामान्य के विषय में इनकी विपरीत मान्यता है, इसका सयुक्तिक विस्तृत खण्डन " सामान्य स्वरूप विचार” प्रकरण में हो चुका है । पदार्थ का सामान्य धर्म दो तरह का है तिर्यक् सामान्य और ऊर्ध्वता सामान्य । तिर्यक् सामान्य अनेक वस्तुओं में पाया जाने वाला सादृश्य धर्म है जो बौद्ध को प्ररुचिकर है उसको सिद्ध करके पुनः ऊर्ध्वता सामान्य का प्रतिपादन किया है, एक ही पदार्थ की जो पूर्व और उत्तर अवस्था होती है उन अवस्थाओं में जो पदार्थ मौजूद रहता है उसको ऊर्ध्वता सामान्य कहते हैं जैसे
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