Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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अाकाश द्रव्यविचार:
२७७
साध्य सिद्धिनिबन्धनम् । विभुद्रव्य विशेषगुणत्वं चासिद्धम् ; शब्दस्य द्रव्यत्वप्रसाधनात् । धर्मादिना व्यभिचारश्च ; अस्य विभुद्रव्यविशेषगुणत्वेपि क्षणिकत्वाभावात् । तस्यापि पक्षीकरणादव्यभिचारे न कश्चिद्ध तुर्यभिचारी, सर्वत्र व्यभिचारविषयस्य पक्षीकरणात् । 'अस्मदादिप्रत्यक्षत्वे सति' इति च
क्योंकि ये सभी एक ही शाखा से पैदा हुए हैं, ऐसा किसी ने अनमान वाक्य कहा सो यह अनुमान प्रत्यक्ष से बाधित होता है-जब हम उस शाखा के एक एक फलको देखते हैं तो कुछ फल कच्चे दिखायी देते हैं, अतः इस अनुमान का एक शाखा प्रभवत्वात् हेतु प्रत्यक्ष बाधित कहलाता है, इसीप्रकार शब्द विभुद्रव्य का विशेष गुण होने से क्षणिक है ऐसा शब्द की क्षणिकता को सिद्ध करनेवाला अनुमान प्रत्यभिज्ञानरूप मानस प्रत्यक्ष से बाधित होता है, और इसीलिये स्वसाध्य को सिद्ध करनेवाला नहीं हो सकता। आपने' शब्दको विभुद्रव्य का विशेष गुण बतलाया किन्तु वह असिद्ध है, शब्द को तो द्रव्यरूप सिद्ध कर चुके हैं । तथा विभद्रव्य का विशेष गुण होने से शब्द क्षणिक है ऐसा कहना धर्म अधर्म के साथ व्यभिचरित होता है, क्योंकि आपके यहां धर्म अधर्म को विभुद्रव्य [आत्मा] के विशेष गुण माने हैं, किन्तु उनमें क्षणिकपना नहीं स्वीकारा अतः क्षणिकत्व साध्य नहीं है । तुम कहो कि धर्माधर्म को पक्षकी कोटि में लिया है अर्थात् उन्हें भी क्षणिक मानने से व्यभिचार नहीं पाता । सो यह बात युक्त नहीं है, इसतरह से तो कोई भी हेतु व्यभिचारी-अनैकान्तिक नहीं रहेगा, जहां भी व्यभिचार प्राता देखेंगे वहां सर्वत्र ही उसको पक्षकी कोटि में ले जाया करेंगे । तथा "अस्मदादिप्रत्यक्षत्वे सति" इस तरह का हेतुमें विशेषण दिया है वह व्यर्थ ठहरता है, क्योंकि व्यवच्छेद्य का अभाव है अर्थात् विशेषण अन्य का व्यवच्छेदक होता है, यहां व्यवच्छेदही नहीं है अतः विशेषण की आवश्यकता नहीं है। कहने का तात्पर्य यह है कि शब्द क्षणिक है, क्योंकि वह हमारे जैसे व्यक्ति के प्रत्यक्ष हुअा करता है एवं विभु-व्यापक द्रव्य का विशेष गुण है, “विभुद्रव्यविशेषगुणत्वात्" ऐसा जो हेतु है उसका विशेषण "हमारे जैसे पुरुषों के प्रत्यक्ष होकर" है सो यह विशेषण हमारे अप्रत्यक्ष रहनेवाले धर्म अधर्म नामा अदृष्ट का व्यवच्छेद करता है, क्योंकि धर्मादिक विभुद्रव्य का गुण तो है किन्तु हमारे प्रत्यक्ष होना रूप स्वभाव उसमें नहीं है, यदि विभुद्रव्य का विशेष गुण होने से शब्द क्षणिक है ऐसा इतना हेतुवाला वाक्य कहते तो यह हेतु व्यभिचरित होता था। किन्तु अब यहां पर धर्मादिको भी पक्ष में लिया अतः उक्त विशेषण [अस्मदादि
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