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आत्मद्रव्यवाद!
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न च सावयवशरीरव्यापित्वे सत्यात्मनस्तच्छेदे छेदप्रसङ्गो दोषाय ; कथञ्चित्तच्छेदस्येष्टत्वात् । शरीरसम्बद्धात्मप्रदेशेभ्यो हि तत्प्रदेशानां छिन्नशरीरप्रदेशेऽवस्थानमात्मनश्छेदः, स चात्रास्त्येव, अन्यथा शरीरात्पृथग्भूतावयवस्य कंपोपलब्धिर्न स्यात् । न च छिन्नावयप्रतिष्ठस्यात्मप्रदेशस्य पृथगात्मत्वानुषंगः; तत्रैवानुप्रवेशात् । कथमन्यथा छिन्ने हस्तादौ कम्पादितल्लिङ्गोपलम्भाभावः स्यात् ?
__ ननु कथं छिन्नाच्छिन्नयो: संघटनं पश्चात् ? न; एकान्तेन छेदानभ्युपगमात्, पद्मनालतन्तुवद
वैशेषिक का कहना है कि सावयव शरीर में यदि आत्मा व्याप्त होकर रहेगा तो शरीर के छेद होने पर या उसके अवयव के छेद होने पर प्रात्मा का भी छेद हो जायगा ? सो यह बात सदोष नहीं है, अर्थात् अवयवों की अपेक्षा कथंचित् आत्मा में छेद होना जैन को इष्ट है किन्तु वह छेद भिन्न जातीय है, अब उसीको बताते हैंआत्मप्रदेशों का शरीर में संबद्ध प्रात्मप्रदेशों द्वारा छिन्न शरीर प्रदेश में रहना आत्मा का छेद कहलाता है, ऐसा छेद तो प्रात्मा में होता ही है अर्थात् प्रात्मा स्वशरीर में सर्वांग व्याप्त होकर रहता है जब कदाचित् उसके शरीर का अवयव-हस्तादि शस्त्रादि द्वारा कटकर भिन्न होता है तब शरीर से पृथक् हुए उस अवयव में आत्मप्रदेश कुछ काल तक रहते हैं, यदि उसमें प्रात्मप्रदेश नहीं होते तो शरीर से पृथक्भूत अवयव कंपित नहीं हो सकता था । तथा यह बात भी है कि शरीर के कटे हुए अवयव में जो आत्मप्रदेश हैं वे उस अवयव के समान आत्मा से पृथक् नहीं होते हैं अतः पृथक् पृथक् आत्मायें बनने का प्रसंग नहीं पाता। कटे हुए शरीरके भागके आत्मप्रदेश उसी शरीर में स्थित प्रात्मा में प्रविष्ट हो जाते हैं । यदि वे प्रदेश शरीरस्थ आत्मा में अनुप्रविष्ट नहीं होते तो कटे हुए हस्तादि अवयव में कंपन होना आदि रूप प्रात्मा के चिह्न का अभाव किसप्रकार होता ।
शंका-छिन्न हुए प्रदेश और नहीं छिन्न हुए प्रदेश इन दोनों का पीछे संघटन किसप्रकार हो सकेगा ?
समाधान-ऐसी शंका नहीं करना, हम जैन आत्मप्रदेशों का एकांत से छिन्न होना नहीं मानते हैं किन्तु कमल की नाल जिसप्रकार टूट जाने पर भी कमल से संबंधित रहती है अर्थात् कमल और नाल के अंतराल में तंतु लगा रहता है उसीप्रकार आत्मप्रदेश शरीर के अवयव के टूट जाने पर टूटे अवयव में तथा इधर शरीर में दोनों
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