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प्रमेयकमलमार्तण्डे
आत्मा क्रियावान् है और क्रियावान् है तो अव्यापक स्वत: सिद्ध हुअा। आत्मा का निरंश या अवयव रहित मानना भी प्रसिद्ध है। जैन भिन्न भिन्न अवयव से बनना रूप अवयव आत्मा में नहीं मानते किन्तु प्रदेश रूप अवयव मानते हैं। प्रात्मा के अवयव स्वीकार करेंगे तो उसके छेद का प्रसंग आता है ऐसी आशंका भी नहीं करना । छेद दो प्रकार का है सर्वथा पृथक् होना रूप छेद और कमल नालवत् छेद । प्रथम छेद तो प्रात्मा में असंभव है, उसमें तो कमलनाल के टूट जाने पर जैसे परस्पर में तन्तु संबंध रहता है वैसा छेद प्रात्मा में सम्भव है शरीर के हस्त आदि अवयव कट जाने पर कटे अवयव में कंपन होता है वह कम्पन आत्मप्रदेशों का द्योतक है, इतना अवश्य है कि वे आत्मप्रदेश तत्काल उसी शरीर में प्रविष्ट हो जाते हैं ।
इसप्रकार वैशेषिक का सर्वथा नित्य, सर्वगत, निरंश, क्रियारहित आत्मा सिद्ध नहीं होता किन्तु कथंचित् नित्य-अनित्य स्वशरीर प्रमाण, असंख्य प्रदेशो सक्रिय आत्मा सिद्ध होता है ।
॥ प्रात्मद्रव्यवादविचार का सारांश समाप्त ।
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