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समवायपदार्थविचारः
४३७ इति भेदकलक्षणस्याशेषदोषरहितत्वादिदमुच्यते-तन्तुपटादय: सामान्यत द्वदादयो वा 'संयुक्ता न भवन्ति' इति व्यवहर्तव्यम्, नियमेनायुत सिद्धत्वादाधाराधेय भूतत्वाच्च, ये तु संयुक्ता न ते तथा यथा कुण्डबदरादयः, तथा चैते, तस्मात्संयोगिनो न भवन्तीति । यद्वा तन्तुपटादिसम्बन्धः संयोगो न भवति, नियमेनायुतसिद्धसम्बन्धत्वाद्, ज्ञानात्मनोविषयविषयिभाववदिति ।
ननु समवायस्य प्रमारणतः प्रतीतौ संयोगाद्वैलक्षण्यसाधनं युक्तम्, न चासौ तस्यास्ति; इत्यप्य
संबंध नहीं होता वह तो अयुतसिद्ध में ही होता है फिर भी इनमें आधार-आधेयपना तो नहीं है अतः जिनमें आधार-प्राधेयपना ही हो ऐसा अवधारण किया है ।
___ संयोग विशेष के कारण होनेवाला जो अाधार प्राधेयभाव है उसमें भी इह इदं प्रत्यय होता है जैसे "इस पर्वत पर वृक्ष हैं" यह प्रत्यय भी सर्वदा अनाधार अनाधेय में असम्भव है अर्थात् प्राधार-प्राधेयभाव के बिना नहीं होता है, किन्तु यह समवाय सम्बन्ध नहीं है अतः इसके साथ आने वाले व्यभिचार को दूर करने के लिये पूर्व का अवधारण किया है, अर्थात् अयुत सिद्धानामेव-अयुत सिद्धों में ही जो इहेदं प्रत्यय होता है वह समवाय संबंध का द्योतक है ।
इसप्रकार समवाय नामा पदार्थ का यह लक्षण अन्य जो द्रव्य, गुण, कर्म आदि पदार्थों से सर्वथा भिन्न लक्षणभूत है अतः सम्पूर्ण दोषों से रहित है, अब अनुमान प्रमाण से सिद्ध करते हैं कि-"तन्तु पटादिक अथवा सामान्य-सामान्यवान इत्यादि पदार्थ संयुक्त नहीं होते हैं" ऐसा मानना चाहिये, क्योंकि नियम से अयुतसिद्ध तथा प्राधार-प्राधेयभूत हैं, जो संयुक्त हुया करते हैं वे नियम से अयुतसिद्ध प्रादिरूप नहीं होते हैं, जैसे कुण्ड बेर आदि पदार्थ संयुक्त होने से नियमितपने से अयुतसिद्ध आदिरूप नहीं कहलाते हैं, तन्तु-पट आदिक नियम से प्राधार-प्राधेय एवं अयुतसिद्ध हैं अतः संयोगी नहीं हैं । दूसरा अनुमान भी है कि-तन्तु वस्त्र आदि पदार्थों का जो संबंध है वह संयोग नहीं कहलाता, [साध्य] क्योंकि यह संबंध नियम से अयुतसिद्ध संबंधरूप है, जैसे ज्ञान और आत्मा में विषयविषयी भावरूप नियमित अयुतसिद्ध संबंध रहता है।
शंका-समवाय की प्रमाण से प्रतीति होती तब आप इसको संयोग से .. विलक्षण सिद्ध करने का प्रयत्न करते, किन्तु समवाय प्रमाण द्वारा प्रतीत नहीं होता ?
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