Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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समवायपदार्थविचार:
णात् । न चासौ सम्बन्धोऽभावरूपत्वात् । नापि 'इहाकाशे शकुनिः' इति प्रत्यय हेतुना संयोगेन ; 'आधाराधेयभूतानाम्' इत्युक्त: । न ह्याकाशस्य व्यापित्वेनाधस्तादेव भावोस्ति शकुनेरुपर्यपि भावात् । नापि 'इह कुण्डै दधि' इतिप्रत्यय हेतुना; 'अयुत सिद्धानाम्' इत्यभिधानात् । न खलु तन्तुपटादिवधिकुण्डादयोऽयुत सिद्धा:, तेषां युतसिद्ध ेः सद्भावात् । युतसिद्धिश्च पृथगाश्रयवृत्तित्वं पृथग्गतिमत्त्वं चोच्यते । न चासो तन्तुपटादिष्वप्यस्ति ; तन्तून्विहाय पटस्यान्यत्रावृत्तेः ।
तथापि 'इहाकाशे वाच्ये वाचक ग्राकाशशब्द:' इति वाच्यवाचकभावेन 'इहात्मनि ज्ञानम्' इति विषयविषयिभावेन वा व्यभिचारोऽत्रायुतसिद्धेराधाराधेयभावस्य च भावात् इत्यप्यसाम्प्रतम् ;
लक्षण सदोष नहीं होता । अन्तराल का प्रभाव सम्बन्ध नहीं है क्योंकि अभावरूप है [ सम्बन्ध सद्भावरूप हुआ करता है ] यहां आकाश में पक्षी है" इस संयोगरूप ज्ञान के निमित्त से भी समवाय का लक्षण बाधित नहीं होता क्योंकि उस लक्षण में हमने "आधार - प्राधेयभूतों का सम्बन्ध" ऐसा वाक्य जोड़ा है, आकाश और पक्षी का ऐसा आधार आधे सम्बन्ध नहीं होता, क्योंकि श्राधार प्राधेय के नीचे होता है और आकाश व्यापक होने से पक्षी के नीचे के ओर ही होवे सो बात नहीं, ऊपर की ओर भी होता है । इस कुण्डा में दही है इत्यादि प्रतीति द्वारा भी व्यभिचार नहीं होगा, क्योंकि कुण्डा में दही आधार प्राधेयभूत तो है किन्तु प्रयुत सिद्ध नहीं है [ अपृथक् नहीं है ] जिसप्रकार तन्तु रपट में अयुतपना है उसप्रकार दही और कुण्डा में नहीं है, वे तो युतसिद्ध हैंपृथक् पृथक् सिद्ध हैं. युतसिद्ध का अर्थ यही है कि पृथक् श्राश्रय में रहना जैसे कि दो मल्लों में पृथक् पृथक् आश्रय है, पृथक् पृथक् गतिमान होना भी युतसिद्धत्व है, जैसे दो मेंढ़ा में है, ऐसा पृथक् पृथक् श्राश्रयपना तन्तु और वस्त्र में नहीं है, क्योंकि तंतुनों को छोड़कर अन्यत्र वस्त्र नहीं रहता ।
शंका- श्राधार- श्राधेयभूत एवं अयुत सिद्ध इन दोनों विशेषणों को लेने पर भी व्यभिचार आता है क्योंकि यहां पर आकाशरूप वाच्य में वाचक आकाश शब्द रहता है इसतरह वाच्य वाचक संबंध से इहेदं प्रत्यय होता है, तथा " इस आत्मा में ज्ञान है" इसतरह विषय विषयी भाव संबंध से इहेदं प्रत्यय होता है, आधे तथा युत सिद्धपना दोनों है किंतु समवाय संबंध न होकर वाच्यवाचक संबंध तथा विषयविषयी संबंध है, अतः समवाय का लक्षण गलत है ?
इसमें आधार -
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