Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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विशेषपदार्थविचार के खंडन का सारांश
विशेष पदार्थ भी सिद्ध नहीं है, वैशेषिक इसका नित्य द्रव्य में अस्तित्व मानते हैं, किन्तु सर्वथा नित्य द्रव्य किसी भी प्रमाण से सिद्ध नहीं होता । प्रत्येक पदार्थ परस्पर में विशिष्ट प्रतीत होता है वह विशेष पदार्थ द्वारा होता है ऐसा कहना अयुक्त है, पदार्थ किसी भिन्न विशेष से विशिष्ट प्रतीत न होकर स्वतः ही विशिष्टरूप प्रतीत होता है । वैशेषिक द्रव्य आदि में व्यावृत्त प्रत्यय विशेष द्वारा होता है और विशेष में उक्त प्रत्यय स्वतः होता है ऐसा मानते हैं। किन्तु यह प्रमाण द्वारा सिद्ध नहीं होता। अनवस्था दोष आता है क्योंकि यदि द्रव्य में विशेष द्वारा व्यावृत्त प्रत्यय होता है तो विशेष पदार्थ में भी अन्य विशेष द्वारा व्यावृत्त प्रत्यय होना चाहिए इसप्रकार अनवस्था पाती है। तथा विशेष पदार्थ में स्वतः व्यावृत्त प्रत्यय होता है तो अन्य द्रव्य में भी स्वतः होना चाहिए।
विशेष में व्यावृत्त प्रत्यय स्वतः होता है और अन्य द्रव्य में व्यावत्त प्रत्यय पर से होता है जैसे अशुचि विष्ठा आदि में अशुचिपना स्वतः होता है और अन्य पदार्थ में अशुचिपना विष्ठादि मल संपर्क से होता है ऐसा कहना भी असत् है, प्रशुचि विष्ठादि के संपर्क से मोदक आदि पदार्थ जो अशुचि होते हैं वे शुचिरूप पूर्व अवस्था का त्याग कर अशुचिरूप होते हैं, ऐसा परिवर्तन आपके द्रव्यों में सम्भव नहीं क्योंकि नित्य द्रव्य में विशेष पदार्थ रहता है अतः उक्त परिवर्तन होना अशक्य है । इसतरह विशेष पदार्थ की सिद्धि नहीं होती है ।
॥ सारांश समाप्त ॥
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