Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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कर्मपदार्थवादः
नापि कर्मपदार्थ: । स हि पञ्चप्रकारः परैः प्रतिपाद्यते - "उत्क्षेपण मवक्षेपणमाकुञ्चनं प्रसारणं गमन मिति कर्माणि " [ वैशे० सू० १1१1७ ] इत्यभिधानात् । तत्रोत्क्षेपरणं यदूर्ध्वाधः प्रदेशाभ्यां संयोगविभागकारणं कर्मोत्पद्यते, यथा शरीरावयवे तत्सम्बद्ध वा मूर्तिमद्रव्ये ऊर्ध्वदिग्भाविभिराकाशदेशाद्यै: संयोगकारण मधोदिग्भागावच्छिन्नं च तैर्विभागकारणम् । तद्विपरीतसंयोगकारणं च कर्मावक्षेपणम् ।
वैशेषिक का कर्म पदार्थ भी सिद्ध नहीं होता है, कर्मपदार्थ के पांच भेद माने है, अब उसी पर विचार किया जाता है
वैशेषिक - " उत्क्षेपणमवक्षेपण माकु चनं प्रसारणं गमन मिति कर्माणि " कर्म के पांच भेद हैं उत्क्षेपण, अवक्षेपण, आकुंचन, प्रसारण, और गमन, ऊपर के प्रदेश और नोचे के प्रदेश द्वारा संयोग तथा विभाग को करने वाली क्रिया उत्क्षेपण कहलाती है, जैसे शरीर के अवयव में ग्रथवा शरीर में सम्बद्ध मूर्तिमान द्रव्य में ऊर्ध्व दिशा सम्बन्धी श्राकाश प्रदेशों के साथ संयोग का कारण होना तथा अधोदिशा सम्बन्धी आकाश प्रदेशों से विभाग का कारण होना | अर्थात् शरीर का अवयव हाथ को ऊपर की ओर उठाया तो ऊपर के आकाश प्रदेशों से तो संयोग हुआ और नीचे के प्रदेशों से वियोग हुआ इत्यादि सर्वत्र समझना ] उत्क्षेपण कर्म से विपरीत क्रिया होने को प्रवक्षेपण कहते हैं, अर्थात् - उत्क्षेपण में ऊपर की ओर शरीरादि अवयवों का ग्राकाश प्रदेशों के साथ संयोग के कारणभूत क्रिया हुई थी और प्रवक्षेपण में नीचे की ओर शरीर के अवयव का प्राकाश
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