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विशेषपदार्थविचार: व्यावृनिबुद्धिविषयत्वं च विशेषाणां सद्भावसाधकं प्रमाणम् । यथा ह्यस्मदादीनां गवादिषु प्राकृतिगुणत्रि.यावयवसयोगनिमित्तोऽश्वादिभ्यो व्यावृत्तः प्रत्ययो दृष्टः, तद्यथा- गौः, शुक्लः, शीघ्रगतिा, पीनककुदः, महाघण्ट:' इति यथाक्रमम् । तथास्मद्विशिष्टानां योगिनां नित्येषु तुल्याकृतिगुणक्रियेषु परमाणुषु मुक्तात्ममनस्सु चान्यनिमिताभावे प्रत्याधारं यबलात् 'विलक्षणोयं विलक्षणोयम्' इति
स्ते योगिनां विशेषप्रत्ययोनीतसत्त्वा अन्त्या विशेषा: सिद्धाः ।
इत्यपि स्वाभिप्रायप्रकाशनमात्रम् ; तेषां लक्षणासम्भवतोऽसत्त्वात् । तथाहि-यदेतेषां नित्यद्रव्य वृत्तित्वादिकं लक्षणमभिहितं तदसम्भवदोषदुष्टत्वादलक्षणमेव; यतो न किञ्चित्सर्वथा नित्यं द्रव्यमस्ति, तस्य पूर्वमेव निरस्तत्वात् । तदभावे च तद्वृत्तित्वं लक्षणमेषां दूरोत्सारितमेव ।
विशेषों के अस्तित्व को सिद्ध करने वाला प्रमाण व्यावृत्ति बुद्धि का विषय होना रूप है, अर्थात् पदार्थों में व्यावृत्तपने का जो ज्ञान होता है उसी से विशेष पदार्थ की सिद्धि होती है। इसी का खुलासा करते हैं-जिसप्रकार हम लोगों को गो आदि पदार्थों में प्राकृति-जाति के निमित्त से [गोत्व जाति से] गुण-श्वेतादि से, क्रिया से, ककुदादि अवयव से, घंटादि के संयोग से व्यावृत्तपने की बुद्धि होती है अर्थात् अश्व आदि अन्य पशुओं से यह गो पृथक है, क्योंकि इसकी जाति गुण, अवयव आदिक भिन्न है इत्यादिरूप भिन्नपने का जो ज्ञान होता है वह विशेष पदार्थ के कारण ही होता है, आकृति, गुण, क्रिया, अवयव और संयोग इन पांच विशेषों के निमित्त से गो आदि पदार्थ में व्यावृत्त बुद्धि उत्पन्न होती है, जैसे-यह गौ शुक्ल वर्णयुक्त, शीघ्रगामी, स्थूलककुद एवं महाघंटा युक्त है ये क्रम से पांच विशेष गो को अश्वादि से व्यावृत्त करते हैं। जैसे गो की अश्वादि से जाति आदि द्वारा व्यावृत्ति होती है वैसे ही हमारे से विशिष्ट जो योगीजन हैं वे समान प्राकृति, गुण, क्रिया वाले परमाणुगों में तथा मुक्तात्मा एवं मन में अन्य निमित्त के बिना जिसके बल से प्रत्येक में यह विलक्षण है, यह विलक्षण है इत्यादि ज्ञान द्वारा उन परमाणु आदि के विशेषों को जानते हैं, उन योगीजनों के ज्ञान द्वारा जिनका सत्व जाना हुआ है ऐसे ये अन्त्य विशेष होते हैं, अर्थात् योगी ज्ञान द्वारा परमाणु आदि के अन्त्य विशेषों की सिद्धि होती है ।
जैन-यह कथन अपने मनका है, क्योंकि उन विशेषों का लक्षण असम्भव है। विशेषों का लक्षण किया है कि जो नित्य द्रव्यों में रहे व्यावृत्तबुद्धि का हेतु हो
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