________________
विशेषपदार्थविचार:
४२६ यदि च विशेषाख्यपदार्थान्तरव्यतिरेकेण विलक्षणप्रत्ययोत्पत्तिनं स्यात् ; कथं तहि विशेषेषु तस्योत्पत्तिस्तत्रापरविशेषाभावात् ? भावे वा अनवस्था, नित्यद्रव्यवृत्तयः' इत्यभ्युपगमक्षतिश्च स्यात् । अथ स्वत एवात्रा योन्यवैलक्षण्यप्रतिपत्ति ; तहि परमाण्वादीनामप्यत एव तत्प्रत्ययप्रवृत्तिर्भविष्यतीति कृतं विशेषाख्यपदार्थपरिकल्पनया ।
अथ विशेषेष्वपरविशेषयोगाद्वयावृत्तबुद्धिपरिकल्पनायामनवस्थादिबाधकोपपत्तेरुपचारात्तेषु तबुद्धिः । ननु कोयं तदबुद्धरुप चारो नाम ? असतो वस्तुस्वभावस्य विषयत्वेनाक्षेपश्चेत् ; कथं नास्या मिथ्यात्वं तद्योगिनां चायोगित्वम् ?
दूसरी बात यह है कि-यदि विशेषनामा पदार्थ के बिना विलक्षण प्रतिभास की उत्पत्ति नहीं होगी तो स्वयं विशेषों में विलक्षण प्रतिभास को उत्पत्ति किसप्रकार होवेगी। विशेषों में अन्य विशेष का तो अभाव है ? यदि विशेषों में अन्य विशेष स्वीकार करेंगे तो अनवस्था आयेगी, तथा नित्य द्रव्यों में विशेष रहते हैं, ऐसा पापका स्वीकृत पक्ष भी नष्ट होगा [क्योंकि विशेषों में भी विशेष रहते हैं ऐसा कहा
वैशेषिक-विशेषों में स्वतः ही अन्योन्य वैलक्षण्य की प्रतोति होती है ?
जैन-तो फिर परमाणु प्रादि द्रव्यों में भी स्वयं ही विलक्षण प्रतिभास हो जायेगा इस विशेष पदार्थ की कल्पना से कुछ प्रयोजन नहीं रहता है। अभिप्राय यह है कि द्रव्य स्वयं ही अपनी विशेषता के कारण विलक्षण प्रतीति का कारण हो रहा है, जिस किसी भी वस्तु का स्वयं का गुण या स्वभाव हो उक्त प्रतीति में कारण है।
___ वैशेषिक-विशेषों में अपर विशेषों के योग से व्यावृत्त बुद्धि होती है ऐसा मानने पर अनवस्थादि बाधायें उपस्थित होती हैं अत: विशेषों में जो व्यावृत्ति की बुद्धि होती है वह उपचार से होती है, ऐसा हम मानते हैं।
जैन-उस बुद्धि का उपचार क्या है ? असत् वस्तु स्वभाव का विषयपने से ग्राक्षेप करना, ऐसा कहो तो असत् वस्तु स्वभाव को विषय करने वाली वह बुद्धि मिथ्या कैसे नहीं और उस बुद्धि के धारक योगी लोग भी अयोगी कैसे नहीं हुए ? . अर्थात् हुए ही।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org.