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प्रमेयकमलमार्तण्डे
न चैकरूपस्यार्थस्य क्रियासमावेशो युक्तः; सर्वदाऽविशिष्टत्वात् । यत्सर्वदाऽविशिष्ट न तस्य क्रियासम्भवो यथाकाशस्य, अविशिष्ट चैकरूपं वस्त्विति । न चैकरूपत्वेप्यर्थानां गन्तृस्वभावता युत्ता; निश्चलत्वाभावप्रसङ्गात्, सर्वदा गन्तृत्वैकरूपत्वात् । अथाऽगन्तृत्वरूपताप्येषामजी क्रियते; तथा सत्याकाशवदगन्तृतैव स्यात् । एवं च गत्यवस्थायामप्यचलत्वमेषां प्रसक्त लदपरित्यक्ताऽगतिरूपत्वान्निश्चलावस्थावत् । न चोभयरूपत्वादेषामयमदोषः; गन्तृत्वागन्तृत्वविरुद्धधर्माध्यासेनैकत्वव्याघातानुषङ्गादचलाऽनिल वत् ।
यथा चाक्षरिणकैकरूपस्यार्थस्य क्रिया नोपपद्यते तथा क्षणिकैकरूपस्यापि ; उत्पत्तिप्रदेश एवास्य प्रध्वंसेन प्रदेशान्तरप्राप्त्यसम्भवात् । या ह्य त्पत्तिप्रदेश एव ध्वंसमुपगच्छति न सोन्यदेशमाक्रामति यथा
तथा आपके यहां जीवादि पदार्थ एक रूप में ही अवस्थित है उसमें क्रिया का समावेश करना युक्त नहीं, जो सर्वदा समानरूप से स्थित है उसमें क्रिया नहीं होती, जैसे आकाश में नहीं होती, वस्तु सदा एकरूप में अविशिष्ट है अतः उसमें क्रिया नहीं होती, इसप्रकार अनुमान द्वारा आपके मान्य पदार्थ में क्रिया का निषेध होता है। एक रूप में अवस्थित पदार्थों में भी गमन स्वभावरूप क्रिया है ऐसा मानना युक्त नहीं होगा, अन्यथा उन पदार्थों का निश्चलपना समाप्त होवेगा, क्योंकि वह एकरूप पदार्थ सर्वदा गमन क्रिया में जुट जायगा । इन पदार्थों में अगमनरूपता भी मानी जाती है, ऐसा कहना भी गलत है, यदि अगमन स्वभाव मानते हैं तो सर्वदा अगमनरूपता ही रहेगी, जैसे आकाश में अगमनरूपता सर्वदा रहती है। और इसतरह इन पदार्थों में फिर गमन अवस्था में भी अचलपना मानना होगा, क्योंकि इन्होंने प्रगतिरूपता को छोड़ा नहीं है। जैसे निश्चलावस्था में नहीं छोड़ता ऐसा भी नहीं कह सकते कि-गमन और अगमन दोनों रूप पदार्थ है अतः कोई दोष नहीं पाता, क्योंकि गमन और अगमन इनमें विरुद्धपना है, दोनों को एकत्र मानने से उन पदार्थों में एक रूपता का व्याघात होता है, जैसे पर्वत और वायु में विरुद्ध धर्म होने से एकरूपता नहीं है ।
जिसप्रकार सर्वथा अक्षणिक [ नित्य ] एकरूप पदार्थ में क्रिया उत्पन्न नहीं होती है, उसीप्रकार सर्वथा क्षणिक एकरूप पदार्थ में भी क्रिया होना असम्भव है, क्योंकि क्षणिक पदार्थ जहां पर उत्पन्न हुअा वहीं पर नष्ट हो जाता है, अतः देशांतर में गमनरूप क्रिया नहीं कर सकता, अनुमान सिद्ध बात है कि-जो पदार्थ उत्पत्ति के स्थान पर ही नष्ट होता है वह अन्य स्थान पर नहीं जाता है, जैसे बौद्धमतानुसार
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