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गुणपदार्थवादः
बड़ा
परिमाण भी वस्तु का स्वतः सिद्ध धर्म है अर्थात् लम्बा, चौड़ा, छोटा, इत्यादि माप वस्तु में स्वयं है गुरण के कारण नहीं है । स्नेह गुण केवल जल में मानना हास्यास्पद है घृतादि में स्पष्टरूप से स्नेहत्व का अस्तित्व देखा जाता है । संस्कार के तीन भेद का व्यावर्णन भी अज्ञानता द्योतक है क्योंकि यह तो प्रत्यक्ष ही क्रियारूप सिद्ध है । इसप्रकार परवादी का गुण पदार्थ सिद्ध नहीं है ।
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|| गुणपदार्थवाद का सारांश समाप्त ॥
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