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गुणपदार्थवादः ननु काठिन्यादेः संयोगविशेषरूपत्वाभावे कथं कठिनमेव कणिकादिद्रव्यं मर्दनादिना मृदुत्वमा. पाद्यते ? इत्यप्यसुन्दरम् ; न हि तदेव द्रव्यं मृदु भवति । किं तर्हि ? पूर्वकठिनपर्यायनिवृत्ती मृदुपर्यायोपेतं द्रव्यान्तरमुत्पद्यते । संयोगविशेषमृदुत्ववादिनापि पूर्वद्रव्यानिवृत्तिरत्राभ्युपगतैव । ततः स्पशंविशेषो मृदुत्वादिरभ्युपगन्तव्य: 'कठिन: स्पर्शो मृदुः स्पर्शः' इति प्रतीतिदर्शनात् । तथा च पाकजत्वमपि स्पर्शस्योपपन्न घटादिषु रूपादिवत् विलक्षणस्पर्शोपलम्भात् नान्यथा । न च काठिन्यादिव्यतिरेकेण स्पर्शस्यान्यद्वैलक्षण्यं व्यवस्थापयितु शक्यमिति ।
काठिन्यादिक संयोग विशेष नहीं है । तथा चटाई आदि के अवयव प्रशिथिल संयोगरूप होते हैं किन्तु उनमें मृदुत्व प्रतीत होता नहीं और विशिष्ट चर्म आदि के अशिथिल संयोग होने पर भी मृदुत्व प्रतीत होता है, अतः सिद्ध होता है कि संयोग विशेष मात्र मृदुत्वादि नहीं हैं अपितु पृथक् ही गुण हैं ।
वैशेषिक- यदि काठिन्य, मृदुत्वादि संयोग विशेषरूप नहीं होते तो कठिन स्वरूप प्राटा आदि पदार्थ मर्दन-कटनादि क्रिया द्वारा किसप्रकार मृदुभाव को प्राप्त होते ?
जैन-यह कथन असुन्दर है, मर्दन द्वारा वहो द्रव्य मृदु नहीं होता किन्तु पूर्व की कठिन पर्याय निवृत्त होकर मदुता पर्यायरूप द्रव्यांतर उत्पन्न होता है। आप स्वयं ही संयोग विशेष को मृदुत्व मान रहे हैं सो पूर्व द्रव्य की निवृत्ति होना आपको भी इष्ट है ऐसा सिद्ध होता है, अतः स्पर्शगुण का भेद विशेष मृदुत्व, काठिन्यादि है ऐसा मानना चाहिये, यह कठोर स्पर्श है, यह मृदु है इत्यादि प्रतीति होने से भी मदुत्वादि गुणों की सिद्धि होती है। मदुत्वादिको स्पर्श विशेषरूप मानने पर इस स्पर्श का पाकजपना भी घटित होता है, जैसे घट ग्रादि पदार्थों में रूपादिका पाकजपना देखा जाता है । यदि, मदुत्वादिको स्पर्श विशेषरूप नहीं मानें तो स्पर्शगुण का पाक जपना सिद्ध नहीं होगा, क्योंकि फिर उसमें विलक्षण स्पर्शत्व उपलब्ध नहीं हो सकेगा, स्पर्श की विलक्षणता तो कठोरता, मदुता ही है, अन्य कोई विलक्षणता व्यवस्थापित नहीं होती है।
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