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गुणपदार्थवादः
३६५ ननु परमाणुपरिमाणजन्यत्वे द्वयणुकेपि परमाणुत्वप्रसङ्गः स्यात् ; तन्न; कार्यकारणयोस्तुल्यपरिमाणत्वे दृष्टान्ताभावात् । सर्वत्र हि कारणपरिमाणादधिकमेव कार्यपरिमारणं दृश्यते । परिमाणवच्च कर्मण्यप्यसमवायिकारणत्वमस्या: स्यात् । दृश्यते हि द्वाभ्यां बहुभिर्वा पाषाणाद्युत्थापनम् । न चात्र सख्यायाः कारणत्वं भवद्भिरिष्टम् । अथास्यास्तत्रापि निमित्तत्वमिष्यते; को वे निमित्तत्वे विप्रतिपद्यते ? सामान्यादीनामपि तदभ्युपगमात् । असमवायिकारणत्वं तु तस्याः परिमाणवदुत्थापनादिकर्मण्य भ्युपगन्तव्यम्, न चान्यत्रापीत्यल मतिप्रसंगेन ।
_ जैन – यह गलत है, कार्य और कारण सर्वथा समान परिमारण वाले होवे ऐसा कहीं पर देखा नहीं गया है, सब जगह कारण के परिमाण से अधिक परिमाण वाला कार्य देखा जाता है। एक बात और भी है कि परिमारण का असमवायीकारण यदि द्वित्वादि संख्या है तो उसे कर्म का [ क्रिया का ] असमवायीकारण भी मानना चाहिये ? देखा भी जाता है कि दो पुरुष अथवा बहुत से पुरुषों द्वारा पाषाण आदि को उठाया जाता है, किन्तु इस कर्म में आपने संख्या को कारण नहीं माना है ।
वैशेषिक-हम लोग उस क्रिया में भी संख्या को निमित्त मानते हैं ?
जैन-निमित्त मानने में कौन विवाद करता है ? उक्त क्रिया में तो सामान्यादिको भी निमित्त कारण माना है किन्तु पाप उक्त संख्या को असमवायी कारण मानते हैं वह सिद्ध नहीं होता क्योंकि यदि संख्या परिमाण के प्रति असमवायीकारण हैं तो उत्थापन [ उठाना ] आदि क्रिया में भी उसे असमवायीकारण मानना होगा केवल परिमाण के प्रति नहीं । अब इस विषय में अधिक नहीं कहते ।
विशेषार्थ-घट आदि पदार्थ रूप कार्यों को तीन कारण होते हैं ऐसा वैशेषिक का कहना है, समवायीकारण, असमवायीकारण और निमित्त कारण । घट का समवायीकारण मिट्टो है, असमवायीकारण पानी, चाक आदि है और निमित्त कारण कुम्हार है, ये कारण उपादान, सहकारी और निमित्त के समान हैं। यहां पर चर्चा है संख्या की, वैशेषिक संख्या को गुणरूप मानता है, इसे द्वयणुक आदि द्रव्य के परिमाण का असमवायीकारण बतलाया इस पर जैन ने कहा कि यदि संख्या द्वयणुकादि के परिमाण के असमवायीकारण होती है तो उसे कर्म अर्थात् क्रिया के प्रति भी असमवायी कारण होना चाहिये। किन्तु वैशेषिक ऐसा मानते नहीं, संख्या को गुणरूप मानना
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