Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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गुणपदार्थवादः तथा मेषादिषु विभक्तबुद्धिविभागरहितपदार्थमात्रनिबन्धना विभक्तत्वादनेकपदार्थसन्निधानायत्तोदयत्वाद्वा देवदत्तयज्ञदत्तगृहविभागबुद्धिवद् हिमवद्विन्ध्यविभागबुद्धिवद्वा।
सत्यपि वा संयोगे विभागस्य तदभावलक्षणत्वान्न गुणरूपता। कथमन्यथा पुत्रादौ चिरनिवृत्तेपि संयोगे विभक्तप्रत्ययः स्यात् ? न खलु तत्र विभागः संभवति, अस्य कियत्कालस्थायिगुणत्वेनाभ्युपगमात् । कथं वा हिमवद्विन्ध्यादौ संयोगेऽनुत्पन्नेपि विभक्तप्रत्यय: स्यात् संयोगाभावात् ? व्यतिरिक्तविभागस्वरूपस्य क्वचिदप्यनुपलम्भान्नोपचारकल्पनापि साध्वी ।
वस्तुओं के सन्निधान से होती है, विवादग्रस्त अनेक वस्तुओं के सन्निपात में होने वाली संयुक्त बुद्धि भी परकल्पित संयोग गुण के बिना ही होती है ।
विभाग गणका निषेधक अनुमान-मेष आदि पशुत्रों में "यह मेष इस मेष से विभिन्न है" इत्यादि विभक्तपने की जो बुद्धि होती है वह विभाग गुण रहित मात्र उस पदार्थ के निमित्त से ही होती है, क्योंकि यह विभक्त स्वभाव वाली है, अथवा अनेक पदार्थों के सन्निधान के अधीनता से उदित हुई है [अनेक पदार्थों के साथ इंद्रियों का सन्निकर्ष होना और उस सन्निकर्ष के निमित्त से उत्पन्न होना ] जैसे देवदत्त के घर और यज्ञदत्त के घर में विभागरूप बुद्धि होती है, अर्थात् यह घर उस घर से विभक्त है-विभिन्न है ऐसा ज्ञान होता है, अथवा हिमाचल और विन्ध्याचल में विभाग रूप बुद्धि होती है।
संयोग को कदाचित् स्वीकार करने पर भी विभाग का गुणपनातो असम्भव है क्योंकि संयोग का अभाव होना ही विभाग है [विभाग गुणरूप नहीं अपितु संयोगाभाव ही है] यदि ऐसी बात नहीं होती तो चिरकाल से जिसका संयोग निवृत्त [हटा] हुआ है ऐसे पुत्रादि में विभक्तपने का ज्ञान कैसे होता ? संयोग के अभाव के कारण ही तो होता है । उस विभक्तपने के ज्ञान का कारण विभाग है ऐसा भी नहीं कहना, क्योंकि आपने विभाग को कुछ काल तक का स्थायी गुण माना है [ चिरकाल स्थायी नहीं ] हिमाचल तथा विन्ध्याचल आदि में संयोग के उत्पन्न नहीं होने पर भी विभक्तपने का ज्ञान किसप्रकार होगा, क्योंकि संयोग का अभाव है ? आप प्राप्तिपूर्वक अप्राप्ति होने को अर्थात् पहले संयोग पश्चात् विभाग होने को विभाग गुण मानते हैं ऐसा विभाग विन्ध्याचल हिमाचल में नहीं है। वस्तु के भिन्न स्वरूप के अतिरिक्त विभाग कहीं भी
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