Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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गुणपदार्थवादः
४०५ एतेन विभागजविभागोपि चिन्तितः । तस्यापि संयोगाभावरूपस्य क्रियात एवोत्पत्तिप्रसिद्धेः । ननु यदि विभागजविभागो न स्यातहि हस्तकुड्यसंयोगविनाशेपि शरीरकुड्यसंयोगविनाशो न प्राप्नोति ; तन्न ; हस्तकुड्यसंयोगव्य तिरेकेण शरीरकुडयसंयोगस्यैवासंभवात् । हस्तकुड्यसंयोगादेवासी कल्प्यते इति चेत् ; तर्हि हस्तकर्मदर्शनाच्छरीरेपि कर्म कस्मान्न कल्प्यते तुल्याक्षेपसमाधानत्वात् ?
___ यच्चोच्यते तत्प्रसिद्धयेऽनुमानम्-विवक्षितावयवक्रियाऽऽकाशादिदेशेभ्यो विभागं न करोति, द्रव्यारम्भकसंयोगविरोधिविभागोत्पादकत्वात्, या पुनराकाशादिदेशविभागकी सा संयोगविशेष
जाना रूप क्रिया अन्य है तो यही बात अन्यत्र भी घटित करनी चाहिए, क्योंकि हमने ऐसा तो नहीं कहा है कि जिस क्रिया से संयोग उत्पन्न हुअा है उसो क्रिया द्वारा संयोग हटाया जाता है।
_ विभाग के विषय में जैसे विचार किया वैसे ही विभाग से होने वाले विभाग का विचार है अर्थात् विभाग के खण्डन से विभागज विभाग भी खण्डित होता है, क्योंकि यह विभाग भी संयोग के अभावरूप है और क्रिया से ही उत्पन्न होता है।
__ वैशेषिक-यदि विभागज विभाग न माना जाय तो हाथ और भित्ति के संयोग का विनाश होने पर भी शरीर और भित्ति के संयोग का विनाश नहीं हो सकेगा ?
जैन-ऐसा नहीं कहना, हाथ और भित्ति का संयोग ही शरीर और भित्ति का संयोग कहलाता है, इसके अतिरिक्त शरीर और भित्ति का संयोग ही असम्भव है।
वैशेषिक--भित्ति और शरीर के संयोग की कल्पना तो हस्त और भित्ति के संयोग से की जाती है ?
जैन-तो फिर हस्त में होने वाली क्रिया को देखकर शरीर में क्रिया की कल्पना क्यों न की जाय शंका और समाधान तो बराबर ही है। अब वैशेषिक विभागज विभाग की सिद्धि के लिये अनुमान प्रस्तुत करते हैं
वैशेषिक-जैन ने विभागज विभाग का खण्डन किया किन्तु यह विभागज विभाग अनुमान से सिद्ध होता है-विवक्षित किसी अवयव की जो क्रिया होती है वह
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