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गुणपदार्थवादः
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द्रव्यमभ्युपगम्यते विजातीयानां द्रव्यानारम्भकत्वात् । किं तहि ? संयोगात्मको गुणः । न च गुणः परिमारणवान्, "निर्गुणा गुणा:" [ ] इत्यभिधानात् । ततो मालाख्यस्य गुणस्य प्रासादादिष्वभावात् 'प्रासादमाला' इत्ययमेव प्रत्ययस्तावदयुक्तः, दूरत एव सा 'महती हस्वा वा' इति प्रत्यय:, मालायाः संख्यात्वेन प्रासादानां संयोगत्वेन महदादेश्च परिमाणत्वेन परैरभ्युपगमात् ।
अथ माला द्रव्यस्वभावेष्यते; तथापि द्रव्यस्य द्रव्याश्रयत्वान्नास्या: संयोगस्वरूपप्रासादाश्रयत्वं युक्तम् । अथासौ जातिस्वभावेष्यते ; तहि प्रत्याश्रयं जातेः समवेतत्वादेकस्मिन्नपि प्रासादे 'माला' इति प्रत्ययोत्पत्तिः स्यात् । ' एका प्रासादमाला महती दीर्घा ह्रस्वा वा' इत्यादिप्रत्ययानुपपत्तिश्च तदवस्थैव; मालायां तदाश्रये च प्रासादादावेकत्वादेर्गुणस्याऽसम्भवात् । बह्वीषु च प्रासादमालासु
क्योंकि प्रासाद विजातीय काष्ठ प्रादि अनेक द्रव्यों से निर्मित है, अतः यह अवयवी द्रव्य नहीं होकर संयोगात्मक गुण है, गुण परिमाणवान् हो नहीं सकता, क्योंकि "निर्गुणा गुणा: " ऐसा वचन है । इससे सिद्ध हुआ कि प्रासाद आदि में माला नामका गुण नहीं है । " प्रासाद माला" यही प्रतिभास प्रयुक्त है केवल दूर से ही यह प्रासादों की पंक्ति बड़ी है अथवा छोटी है ऐसा प्रतिभास होता है । आप माला को संख्यारूप स्वीकार करते हैं, प्रासादों को संयोग गुणरूप, एवं महदादि को परिमाण नामा गुणस्वरूप स्वीकार करते हैं । इसलिये संयोग गुणरूप प्रासाद पंक्ति में माला गुण है ऐसा नहीं कह सकते ।
वैशेषिक - माला [पंक्ति ] को द्रव्य का स्वभाव माना जाय ?
जैन - तो भी ठीक नहीं रहेगा क्योंकि द्रव्य स्वभाव द्रव्य के श्राश्रय में ही रहता है संयोग स्वरूप प्रासादों के प्राश्रय में नहीं ।
वैशेषिक --माला जाति स्वभाव है ?
जैन - जाति तो प्रत्येक आश्रय में समवेत होती है, अतः एक एक आश्रयभूत प्रासाद में रहनेवाली उस जाति के निमित्त से एक प्रासाद में भी "माला - पंक्ति है" ऐसा ज्ञान होने लगेगा। फिर एक प्रासाद माला बड़ी है, यह लम्बी है, यह छोटी है इत्यादि प्रतिभास पूर्ववत् असम्भव ही रहेगा । क्योंकि माला और माला के श्राश्रयभूत प्रासादादि में एकत्वादिगुण का असम्भव है [ इसका भी कारण यह कि उक्त माला आदि
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