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गुरगपदार्थवादः
नापि गुणपदार्थः । स हि चतुर्विंशतिप्रकारः परैरिष्टः। तथाहि-"रूपरसगन्धस्पर्शाः संख्या परिमाणानि पृथक्त्वं संयोगविभागौ परत्वापरत्वे बुद्धयः सुखदुःखे इच्छाद्वषो प्रयत्नश्च तु गुणाः" [ वैशे० सू० १।१।६ ] इति सूत्रसंगृहीता: सप्तदश, चशब्दसमुच्चिताः गुरुत्वद्रवत्वस्नेहसंस्कारधर्माधर्मशब्दाश्च सप्तेति । तत्र रूपं चक्षुर्ग्राह्य पृथिव्युदकज्वलनवृत्ति । रसो रसनेन्द्रियग्राह्यः पृथिव्युदकवृत्ति।। गन्धो घ्राणग्राह्यः पृथिवीवृत्तिः । स्पर्शस्त्वगिन्द्रिय ग्राह्यः पृथिव्यु दकज्वलनपवनवृत्तिः ।
वैशेषिक के द्रव्यनामा पदार्थ का खण्डन करने के अनंतर अब प्रभाचंद्राचार्य उनके गुणनामा पदार्थ का खण्डन करते हैं । सर्व प्रथम प्रतिवादी अपना पक्ष रखते हैं।
___ वैशेषिक--गुणनामा पदार्थ के चौबीस भेद हैं-रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, संख्या, परिमाण, पृथकत्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न ये सतरह गुण तो मूल सूत्र में ग्रहण किये गये हैं शेष सात गुण च शब्द से ग्रहण में आ जाते हैं, वे इसप्रसार हैं-गुरुत्व, द्रवत्व, स्नेह, संस्कार, धर्म, अधर्म और शब्द । अब इनका विशेष विवरण देते हैं-रूपनामा गुण चक्षु द्वारा जाना जाता है और पृथिवी, जल, अग्नि इन तीन द्रव्यों में रहता है । रस गुण रसनेन्द्रियद्वारा ग्राह्य है और पृथिवी तथा जल में रहता है । गंध घ्राणेन्द्रियग्राह्य है एवं केवल पृथिवी द्रव्य में रहता है। स्पर्शगुण स्पर्शनेन्द्रियग्राह्य है यह पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु इन चारों द्रव्यों में रहता है।
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