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प्रमेयकमल मार्त्तण्डे
संख्यात्वेकादिव्यवहारहेतुरेकत्वादिलक्षणा, एकद्रव्या चानेकद्रव्या च । तत्रैकसंख्या एकद्रव्या | श्रनेकद्रव्या तु द्वित्वादिसंख्या । सा च प्रत्यक्षत एव सिद्धा, विशेषबुद्धेश्च निमित्तान्तरापेक्षत्वादनुमानतोपि ।
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परिमाणव्यवहारकारणं परिमाणम्, महदणु दीर्घं ह्रस्वमिति चतुर्विधम् । तत्र महद्द्द्विविधं नित्यमनित्यं च । नित्यमाकाशकाल दिगात्मसु परममहत्त्वम् । प्रनित्यं द्वयणुकादिद्रव्येषु । श्रण्वपि नित्यानित्यभेदाद्विविधम् । परमाणुमनस्सु पारिमाण्डल्यलक्षणं नित्यम् । अनित्यं द्वद्यणुके एव । बदरामलकबिल्वादिषु तु महत्स्वपि तत्प्रकर्षाभावमपेक्ष्य भाक्तोऽणुव्यवहारः ।
संख्या नामा गुण एक, दो इत्यादि संख्या - गिनती का कारण होता है और इसका लक्षण एकत्व आदि है । संख्या के दो भेद हैं, एक द्रव्यसंख्या और अनेक द्रव्य संख्या, एकद्रव्य में रहनेवाली एक संख्या है और दो तीन आदि संख्या अनेक द्रव्य में होती है । यह संख्या गुण प्रत्यक्ष से ही सिद्ध होती है । विशेष या भेद की बुद्धि का कारण यह संख्या ही है यह संख्या द्रव्यादि निमित्त की अपेक्षा रखती है अतः अनुमान द्वारा भी इसकी सिद्धि होती है ।
विशेषार्थ - संख्यानामा गुणका सद्भाव अनुमान से होता है-एक, दो इत्यादि रूप जो ज्ञान होता है वह विशेषण की अपेक्षा लेकर होता है, क्योंकि यह विशिष्ट ज्ञान है, जैसे "यह दण्डावाला है" ऐसा ज्ञान होता है वह विशेषण - दण्डे की अपेक्षा लेकर होता है, एक है, दो है, अथवा एक ग्राम है, दस अनार हैं इत्यादि द्रव्यों में जो एक दस प्रादि विशेषण जुड़ते हैं और उससे हमें जो एक दस आदि का ज्ञान होता है वह संख्यागुण के कारण होता है इसतरह अनुमान से संख्या की सिद्धि होती है । संख्या गुण होने से अकेली प्रतीत न होकर किसी निमित्तकी - वस्तुकी अपेक्षा लेकर प्रतीत होतो है ।
परिमाण - माप का व्यवहार जिसके द्वारा होता है वह परिमाण नामा गुण है। उसके चार भेद हैं, महत्, श्रणु, दीर्घ और ह्रस्व, महद् के दो प्रभेद हैं नित्य और अनित्य । आकाश, काल, आत्मा और दिशा में नित्य परम महत् रहता है और अनित्य महत् द्वणुक आदि द्रव्यों में रहता है । अणु नामा परिमाण भी नित्य प्रनित्य ऐसे दो प्रकार का है, परमाणु और मन इन दो द्रव्यों में रहनेवाला अणु परिमाण नित्य है जो परिमंडलाकार [गोल] है । प्रनित्य अणु परिमाण वास्तविक तो द्वयणुक में ही रहता है,
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