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प्रात्मद्रव्यवादः
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शरीराबहिस्तत्प्रतिभासाभावस्य प्रतिपादितत्वात् । उक्तप्रकारेण चानवद्यस्य बाधकप्रमाणस्य कस्यचिदसम्भवान्न विशेषणासिद्धत्वमिति । तन्न परेषां यथाभ्युपगतस्वभावमात्मद्रव्यमपि घटते ।।
नापि मनोद्रव्यम् ; तस्य प्रागेव स्वस वेदनसिद्धिप्रस्तावे निराकृतत्वात् । तत: पृथिव्यादेव्यस्य यथोपणितस्वरूपस्य प्रमाणतोऽप्रसिद्धेः 'पृथिव्यादी नि द्रव्याणीतरेभ्यो भिद्यन्ते द्रव्यत्वाभिसम्बन्धात्'
लौटते हैं । स्वर्ग में देव देवियां तथा भोग भूमियां, चक्रवर्ती आदि हजारों शरीरों को एक साथ निर्माण करते हैं उनमें एक हो आत्मा के प्रदेश फैले रहते हैं इत्यादि, यह विषय तो आश्चर्य एवं रुचिकर है, इसका विस्तृत विवेचन सिद्धांत ग्रन्थों में [ राजवात्तिक, धवला अादि] पाया जाता है। यहां पर इतना ही कहना कि प्रात्मा निरवयव नहीं है और न सर्वगत ही है, अवयव सहित होकर भी उसके अवयवों का निर्माण होना और अवयवों का निर्माण होने से प्रात्मा उत्पत्ति नाशवाला बनना इत्यादि कुछ भी दूषण नहीं आते हैं, इन दूषणों का निराकरण मूल में कर दिया ही है, अतः निश्चित हुआ कि आत्मा सावयव असर्वगत है ।
इसप्रकार वैशेषिक की आत्मा सम्बन्धी मान्यता बाधित होती है इसलिए ऐसा मानना होगा कि जो जिसप्रकार निर्बाध ज्ञानमें प्रतिभासित होता है वह उसप्रकार व्यवहार में अवतरित होता है, जैसे स्व आरंभक तन्तुओं में प्रतिनियत देश, काल आकार से वस्त्र प्रतिभासित होता है अतः उसी रूप व्यवहार में अवतरित होता है, प्रात्मा भी शरीर में ही प्रतिनियत देश-काल, प्राकार से निर्बाध ज्ञान में प्रतिभासित होता है अतः उसको शरीर में ही स्वीकार करना चाहिए न कि सर्वत्र । शरीर में ही प्रतिनियत देशादि से प्रतीत होना रूप हेतु प्रसिद्ध भी नहीं है, क्योंकि शरीर के बाहर आत्मा का प्रतिभास नहीं होता ऐसा हम सिद्ध कर चुके हैं । आत्मा को शरीर के बाहर सर्वत्र सिद्ध करनेवाला कोई भी निर्दोष प्रमाण नहीं है, वैशेषिक के सभी अनुमान पूर्वोक्त प्रकार से खंडित हो चुके हैं । इसप्रकार प्रात्मा परममहापरिमाण का अधिकरण नहीं है ऐसा प्रारंभ में जैन ने कहा था वह परममहापरिमाण अधिकरण नहीं होना रूप विशेषण असिद्ध नहीं है ऐसा निश्चित हुया । इसतरह वैशेषिक के यहां सर्वगत आदि स्वभाववाला प्रात्मद्रव्य भी अन्य द्रव्यों के सदृश सिद्ध नहीं होता है।
वैशेषिक के सिद्धांत का मनोद्रव्य भी सिद्ध नहीं होता, स्वसंवेदनज्ञानवाद के प्रकरण [पहले भाग में] इस मनोद्रव्य का खण्डन हो चुका है, इसप्रकार पृथिवी, जल,
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