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प्रमेयकमलमार्तण्डे
विच्छेदस्याप्यभ्युपगमात् । तथाभूतादृष्टवशाच्च तदविरुद्धमेव । ततो यद्यथा निर्बाधबोधे प्रतिभाति तत्तथैव सद्व्यवहारमवतरति यथा स्वारम्भकतन्तुषु प्रतिनियतदेशकालाकारतया प्रतिभासमान : पटः, शरीरे एव प्रतिनियतदेशकालाकारतया निर्बाधबोधे प्रतिभासते चात्मेति । न चायमसिद्धो हेतुः;
जगह रहते हैं और अंतराल में भी प्रदेशों का तांता लगा रहता है, यह कार्य उस तरह के अदृष्ट के कारण हो जाता है इसमें कोई विरोध वाली बात नहीं है ।
__विशेषार्थ-आत्मा को अवयव या प्रदेश रहित निरंश मानने वाले परवादी वैशेषिक ने पूछा था कि जैन आत्मा के बहुत से प्रदेश मानते हैं एवं उन प्रदेशों का विघटन-छिन्न होना भी बतलाते हैं सो वे विघटित हुए आत्मप्रदेश वापिस आत्मा में किसप्रकार पा सकेंगे? इस प्रश्न का समाधान जैनाचार्य ने बहुत ही सुन्दर ढंग से दिया है, अथवा इस विषयक वास्तविक सिद्धांत बतलाया है कि शरीर में आत्मा रहता है और कदाचित् शरीर का अवयव कट जाता है तो कटा अवयव और शरीर इन दोनों में स्थित आत्मप्रदेश आपस में बराबर संबंधित रहते हैं, जैसे कमल का डंठल छिन्न होने पर भी कमल से संबंधित रहता है । साक्षात् दिखायी देता है कि शरीर का कोई भाग शस्त्रादि से कट जाता है और उस कटे भाग में कंपन होता रहता है युद्ध में सैनिक का मस्तक कट जाने पर धड़ नाचता रहता है, छिपकलो की पूछ कट जाने पर वह पूछ हिलती रहती है, इत्यादि उदाहरणों से दो जैन सिद्धांत सिद्ध होते हैं कि प्रात्मा के अवयव या प्रदेश बहुत हैं आत्मा निरंश निरवयवी नहीं है, क्योंकि प्रात्मा के अवयव या प्रदेश नहीं होते तो शरीर में और शरीर के तत्काल कटे हुए भाग में चैतन्य के चिह्न-कंपनादि नहीं दिखायी देते। तथा वे प्रात्मप्रदेश सर्वथा विघटित नहीं होते हैं, संकोच और विस्तार को प्राप्त होते हैं। शरीर के कटे अवयव में स्थित प्रात्मप्रदेश और शरीर स्थित प्रात्मप्रदेश इनका वापिस संघटन किस कारण से होता है इसका उत्तर प्रभाचन्द्राचार्य देते हैं कि उसप्रकार के अदृष्ट के वश से पुन: संघटन होता है, टिप्पणीकार अदृष्ट का अर्थ संघटनकारी कर्म करते हैं। इन कारणों से तथा प्रात्मा स्वयं ही संकोच विस्तार प्रदेश स्वभाववाला होने से छिन्न अवयव के प्रदेश वापिस शरीर स्थित आत्मप्रदेशों में शामिल हो जाते हैं, इसी सिद्धांत पर समुद्घात क्रिया अवलंबित है, विक्रिया, कषाय, तेजस, वेदना, अादि समुद्घात में आत्मा के प्रदेश फैलते हैं और मूल शरीर का सम्बन्ध बिना छोड़े वापिस
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