Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे
अथ शरीरात्मसंयोगो देवदत्तशब्दवाच्य :; न; अस्य तच्छब्दवाच्यत्वे तं प्रति चैषामुपसपणे 'तद्गुणाकृष्टास्ते' इत्यायातम् । न च गुणेषु गुणाः सन्ति, निर्गुणत्वात्तेषाम् ।
'प्रात्मसंयोगविशिष्टं शरीरं तच्छब्दवाच्यम्' इत्यत्रापि पूर्ववद्विरुद्धत्वं द्रष्टव्यम् ।
'शरीरसंयोगविशिष्ट प्रामा तच्छब्द वाच्यः' इत्यत्रापि प्राक्तन एव दोषः नित्यव्यापित्वेनास्य सर्वत्र सर्वदा सन्निधानानि वारणात् । न खलु घटसंयुक्तमाकाशं मेर्वादौ न सन्निहितम् ।
अथ शरीरसंयुक्त प्रात्मप्रदेशस्तच्छब्देनोच्यते; स काल्पनिकः, पारमाथिको वा? काल्पनिकत्वे काल्पनिकात्मप्रदेश गुणाकृष्टाः पश्वादयस्तथाभूतात्मप्रदेशं प्रत्युपसर्पणवत्वादिति तद्गुणानामपि
शरीर और आत्माका संयोग देवदत्त शब्द का वाच्यार्थ है ऐसा तीसरा विकल्प भी ठीक नहीं है क्योंकि वैशेषिक ने संयोग को गुणरूप माना है अतः संयोग को देवदत्त शब्द का वाच्यार्थ मानकर उस संयोग के प्रति पशु आदि का उत्सर्पण स्वीकार करने का अर्थ यह हुआ कि उक्त शरीरात्म संयोगरूप गुण में पशु आदि को आकृष्ट करने का गुण है, किन्तु यह अशक्य है, क्योंकि गुणों में गुण नहीं होते वे स्वयं निर्गुण रहते हैं।
प्रात्मा के संयोग से विशिष्ट जो शरीर है वह देवदत्त शब्दका अर्थ है ऐसा चौथा विकल्प भी पहले के समान विरुद्ध है।
शरीर के संयोग से विशिष्ट जो आत्मा है वह देवदत्त शब्द का वाच्य है ऐसा पांचवां विकल्प भी नहीं बनता इसमें भी वही पूर्वोक्त दोष पाता है कि प्रात्मा नित्य सर्वगत है वह सदा सर्वत्र रहता है, अतः उसके प्रति आकृष्ट होना असंभव है वह तो सर्वदा सभी पदार्थों के सन्निधान में ही है। इसीका उदाहरण देकर खुलासा करते हैं कि घट से संयुक्त आकाश है वह मेरु आदि दूरवर्ती पदार्थों के निकट नहीं हो सो बात नहीं, क्योंकि आकाश सर्वगत है, इसीप्रकार प्रात्मा सर्वगत है वह जैसे शरीर में है वैसे दूरवर्ती पशु आदि के सन्निधान में भी है, अतः उसके प्रति पशु आदि के आकृष्ट होने की बात कहना असत् है ।
शरीर में संयुक्त हुए जो आत्मा के प्रदेश हैं वे देवदत्त शब्द का वाच्यार्थ हैं, ऐसा छठा विकल्प माने तो वह आत्मा का प्रदेश काल्पनिक है या पारमार्थिक है ? काल्पनिक माने तो काल्पनिक आत्मप्रदेशका गुण भी काल्पनिक कहलायेगा । फिर उस
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