Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रात्मद्रव्यवाद:
३६३
स्मदाधुपलभ्यमानपाकजगुणाधिष्ठानत्वेपि विभुत्वाभावात् । तत्पाकजगुणानामस्मदाद्यप्रत्यक्षत्वे हि 'विवादाध्यासितं क्षिस्यादिकमुपलब्धिमत्कारणं कार्यत्वाद्घटादिवत्' इत्यत्र प्रयोगे व्याप्तिर्न स्यात् । अथ 'नित्यत्वे सत्यस्मदादिबाह्य न्द्रियोपलभ्य मानगुणत्वात्' इत्युच्यते; तहि बाह्य न्द्रियोपलभ्यमानत्वस्य बुद्धावसिद्धेविशेषणासिद्धो हेतुः ।
है आगे इसीको कहते हैं- जो नित्य होकर हमारे उपलब्ध होने योग्य गुणवाला है वह व्यापक है ऐसा हेतु और साध्यका अविनाभाव नहीं बनता, ऐसा अविनाभाव करने से परमाणु के साथ व्यभिचार होगा। परमाणु नित्य होकर हमारे उपलब्ध होने योग्य पाकज गुणका अधिष्ठान तो है किन्तु व्यापक नहीं है । यदि कहो कि परमाणु के पाकज गुण हमारे उपलब्ध होने योग्य नहीं हैं, तो आप वैशेषिक के ऊपर हो आपत्ति पायेगी, इसीका खुलासा करते हैं-विवाद में आये हुए पृथिवी, पर्वतादि पदार्थ उपलब्धि होने योग्य कारण वाले हैं, क्योंकि वे कार्य हैं, जैसे घटादिक कार्य हैं ऐसा आपके यहां अनुमान प्रयोग है, इसमें साध्य-साधन की व्याप्ति सिद्ध नहीं हो सकेगी, क्योंकि परमाणुओं के पाकज गुणोंको जो कि एक कार्यरूप हैं, हमारे अप्रत्यक्ष मान लिया, अतः जो कार्य होता है वह उपलब्धि कारणवाला होता है, [ प्रत्यक्ष होता है ] ऐसा घटित नहीं कर सकते ।
वैशेषिक-जो द्रव्य बुद्धि का अधिकरण होता है वह व्यापक होता है, इत्यादि अनुमानको थोड़ासा सुधारा जाय, नित्यत्वे सति अस्मदादि उपलभ्यमान गुणाधिष्ठानात् इस हेतु में "बाह्य न्द्रिय” इतना शब्द जोड़कर कहा जाय अर्थात् बुद्धिका अधिकरणभूत द्रव्य व्यापक होता है [साध्य] क्योंकि नित्य होकर हमारे बाह्य इन्द्रिय द्वारा उपलब्ध होने योग्य गुणोंका अधिष्ठान है, ऐसा हेतु देने से साध्य-साधनकी [ पृथिवी आदि को उपलब्धि कारणवाला सिद्ध करने वाले अनुमान के साध्य-साधन की ] व्याप्ति घटित हो जायगी।
जैन-ऐसा "बाह्य न्द्रिय" शब्द हेतु में बढ़ाने पर दूसरे दोषका प्रसंग आयेगा, बुद्धि बाह्य न्द्रिय प्रत्यक्ष तो नहीं है किन्तु व्यापक द्रव्य के अधिकरण में रहती है अतः यह हेतु प्रसिद्ध विशेषण वाला कहा जायगा ।
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