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प्रात्मद्रव्यवादः
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अथ मन्याखेटवत्खेटान्तरे मनुष्यजन्मवज्जन्मान्तरे चोपलभ्यमानगुणत्वं विवक्षितम् ; तत्कि युगपत्, क्रमेण वा ? युगपच्चेत् ; प्रसिद्धो हेतुः । क्रमेण चेत् ; सर्वे सर्वगताः स्युः, घटादीनामपि तथा सर्वत्रोपलभ्यमानगुणत्वसम्भवात् । तेषां देशान्तरगमनात्तत्सम्भवे प्रात्मनोपि ततस्तत्सम्भवोस्तु तद्वत्तस्यापि सक्रियत्वात् । प्रत्यक्षेण हि सर्वो देशाद्देशान्तरमायातमात्मानं प्रतिपद्यते, तथा च वदत्यहमद्य योजनमेकमागतः । मनः शरीरं वागतमिति चेत् ; किं पुनस्तदहम्प्रत्ययवेद्यम् ? तथा चेत् ; चार्वाकमतानुषङ्गः।
शंका-जिसप्रकार कोई व्यक्ति है वह मान्यखेट नगर में जैसे उपलब्ध होता है वैसे अन्य नगर में भी उपलब्ध होता है, तथा मनुष्य पर्याय में जैसे उपलब्ध होता है वैसे अन्य जन्म में भी उपलब्ध होता है, सो इसतरह का उपलब्ध होनारूप जो गुण है उसे उपलभ्यमानगुणत्व कहते हैं, ऐसे गुणत्व की यहां पर विवक्षा है ?
समाधान-अच्छा तो इसतरह का उपलभ्यमानगुणत्व एकसाथ सर्वत्र होता है या क्रम से होता है ? एक साथ सर्वत्र उपलब्ध होना असिद्ध है, क्योंकि ऐसी प्रतीति नहीं होती। क्रम से सर्वत्र उपलब्ध होने को उपलभ्यमान गुणत्व कहते हैं ऐसा कहो तो सम्पूर्ण पदार्थ सर्वगत बन जायेंगे, क्योंकि घटादि भी क्रम से उसतरह के [एक देश, नगर आदि से अन्य देशादि में उपलब्ध होने को सर्वत्र उपलभ्यमान गुणत्व कहते हैं उसतरह के] उपलभ्यमान गुणत्वव ले हुआ करते हैं ?
शंका-घटादि पदार्थ देश से देशांतर चले जाते हैं अतः सर्वत्र उपलब्ध होते हैं ?
___ समाधान-तो फिर आत्मा भी देशांतर में चला जाता है अत: वह सर्वत्र उपलभ्यमान गुणवाला कहलाता है, ऐसा मानना चाहिए, क्योंकि घटादि पदार्थों के समान अात्मा भी सक्रिय-क्रियाशील पदार्थ है सभी प्राणी प्रत्यक्ष से अनुभव करते हैं कि देश से देशांतर में पाया हूं तथा कहते भी हैं कि आज मैं एक योजन चलकर पाया हूं इत्यादि ।
वैशेषिक-योजन आदि चलने की बात तो ऐसी है कि मन या शरीर चलकर पाया करता है ?
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