Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
View full book text
________________
प्रात्मद्रव्यवादः
काल्पनिकत्वं साधयेत् । तथा च सौगतस्येव तद्गुणकृतः प्रेत्यभावोपि न पारमार्थिकः स्यात् । न हि कल्पितस्य पावकस्य रूपादयस्तत्कार्य वा दाहादिकं पारमार्थिक दृष्टम् ।
पारमाथिकाश्चेदात्मप्रदेशाः ते ततोऽभिन्नाः, भिन्ना वा ? यद्यभिन्ना:; तदात्मैव ते इति नोक्तदोषपरिहारः । भिन्नाश्चेत् ; तद्विशेषगुणाकृष्टाः पश्वादय इत्येतत्तेषामेवात्मत्वं प्रसाधयतीत्यन्यात्मकल्पनानर्थक्यम् । कल्पने वा सावयवत्वेन कार्यत्वमनित्यत्वं चास्य स्यादित्युक्तम् ।
गुणसे आकृष्ट हुए पशु आदि उसके पास आते हैं इत्यादि हेतु आत्मगुरगों को काल्पनिक ही सिद्ध करेगा, आत्मा के प्रदेश काल्पनिक सिद्ध होते हैं तो अदृष्ट नामा आत्मा का गुण भी काल्पनिक और उस गुण निमित्तक होनेवाला परलोक भी काल्पनिक होगा जैसे सौगत परलोक को काल्पनिक मानते हैं।
विशेषार्थ-वैशेषिक प्रात्मा को निरश मानते हैं अतः प्राचार्य ने पूछा कि शरीर से संयुक्त आत्माके प्रदेशको देवदत्त शब्द का वाच्यार्थ मानते हैं तो वे वास्तविक हैं या काल्पनिक ? काल्पनिक हैं तो उसमें होने वाले अदृष्टादि गुण भी काल्पनिक होंगे, किंतु अदृष्टादिको असत् गुणरूप मानना खुद वैशेषिक को इष्ट नहीं होगा क्योंकि अदृष्ट जो धर्म-अधर्म है उसी के द्वारा परलोक होना, वहां सुखादिका भोगना आदि कार्य होता है वह कार्य परमार्थभूत नहीं रहेगा, काल्पनिक ही होवेगा जैसे बोद्ध प्रात्मा को क्षणिक मानकर उसमें संवृति से परलोक गमन आदि कल्पना किया करते हैं वैसे ही वैशेषिक के यहां कल्पना मात्र का परलोक सिद्ध होगा। क्योंकि परलोक का हेतु जो अदृष्ट गण है उसे काल्पनिक मान लिया। जो पदार्थ स्वयं काल्पनिक है उससे वास्तविक कार्य सिद्ध नहीं होता बालक में कल्पना से अग्नि का प्रारोप करने पर उससे दाह आदि वास्तविक कार्य होता देखा नहीं जाता।
शरीर से संयुक्त जो आत्मप्रदेश हैं उन्हें काल्पनिक न मानकर पारमार्थिक माना जाय तो पुनः प्रश्न होता है कि वे प्रदेश प्रात्मा से भिन्न हैं कि अभिन्न हैं ? यदि अभिन्न हैं तो आत्मा ही प्रदेश कहलाया फिर वही पहले का दोष आयेगा अर्थात् आत्मा सर्वगत है उसकी तरफ किसी पदार्थ का आकृष्ट होना शक्य नहीं रहेगा । यदि पारमार्थिक प्रदेश प्रात्मा से भिन्न मानते हैं तो “उसके विशेषगुण से आकृष्ट हुए पशु आदि आते हैं" इत्यादि अनुमान उन प्रात्मप्रदेशों को ही प्रात्मत्व सिद्ध कर देता है इसतरह
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org