Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रात्मद्रव्यवादः
३४७ तद्रहितस्यैवायस्कान्तादेस्तद्धेतुत्वं किन्न स्यात् ? तथाविधस्यास्यादर्शनान्नेति चेत् ; तहि लोहद्रव्यक्रियोत्पत्तावुभयं दृश्यते उभयं कारणमस्तु विशेषाभावात् । तथा च ‘एकद्रव्यत्वे सति क्रियाहेतुगुणत्वात्' इत्यस्यानेकान्तः।
सर्वत्र चादृष्टस्य वृत्ती सर्वद्रव्य क्रियाहेतुत्वं स्यात् । 'यददृष्टं यद्व्यमुत्पादयति तददृष्टं तत्रैव क्रियां करोति' इत्यत्रापि शरीरारम्भकाणुषु क्रिया न स्यादित्युक्तम् । अदृष्टस्य चाश्रय पात्मा, स च
जैन- तो फिर चुंबक के विषय में भी स्पर्शगुण को आकर्षण किया का निमित्त न मानकर केवल चुम्बक द्रव्य को माना जाय तो स्पर्शगुण रहित चुम्बकादिक किया के निमित्त है ऐसा मानना होगा।
वैशेषिक-स्पर्श रहित चुबक आकर्षण किया को करते हुए नहीं देखे जाते अतः ऐसा नहीं माना है ।
जैन-तो फिर लोह द्रव्य को किया होने में स्पर्शगुण और चुम्बक द्रव्य दोनों कारण दिखाई देते हैं अतः दोनों को कारण मानना चाहिए कोई विशेषता नहीं है । इस तरह दोनों को कारण स्वीकार करने पर तो “एकद्रव्यत्वे सति कियाहेतुगुणत्वात्" हेतु अनेकान्तिक ठहरता है। क्योंकि उस हेतु वाले अनुमान में किया का हेतु गुण को बतलाया है और यहा द्रव्य तथा गुण दोनों को किया का हेतु मान लिया है।
देवदत्त का अदृष्ट द्वीपांतर के मणि आदि को आकर्षित करता है ऐसा सिद्ध करने के लिये वैशेषिक ने अनुमान दिया था उसमें कौनसा अदृष्ट मणि आदि को प्राकर्षित करता है यह प्रश्न होकर तीन पक्षों से विचार करना प्रारम्भ किया था उनमें से दो पक्ष देवदत्त के शरीर के प्रात्मप्रदेशस्थ अदृष्ट आकर्षण करता है, और द्वीपांतर स्थित प्रात्मप्रदेश का अदृष्ट आकर्षण करता है ये तो खण्डित हो चुके, अब तीसरा पक्ष सर्वत्र रहने वाले आत्मप्रदेशों का अदृष्ट द्वीपांतरस्थ मणि आदि का आकर्षण करता है ऐसा मानना भी गलत है, क्योंकि इस तरह की मान्यता से सब जगह के मणि आदि पदार्थों को आकर्षित करने का प्रसंग आता है ।
शंका-जो अदृष्ट जिस द्रव्य का निर्माण करता है वह अदृष्ट उसी द्रव्य में क्रिया को करता है ?
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