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प्रमेयकमलमार्त्तण्डै
प्रयत्नसधर्मरणा केनचिदाकृष्टाः पश्वादयः किं वाञ्जनादिसधर्मणा' इति सन्देहः । शक्यं हि परेणाप्येवं वक्तुम्-विवादापन्नाः पश्वादयोऽञ्जनादिसधर्मरणा समाकृष्टास्तं प्रत्युपसर्पणवत्त्वात् स्त्र्यादिवत् । अथ तदभावेपि प्रयत्नादपि तद्दृष्टेरनेकांता; तर्हि प्रयत्न सधर्मणो गुणस्याभावेप्यंजनादेरपि तद्द्दृष्टेर्भवदीयतोरप्यनैकान्तिकत्वं स्यात् । श्रत्रानुमीयमानस्य प्रयत्नसधर्मणो हेतुत्वादव्यभिचारे अन्यत्राप्यंजनादिधर्मगोनुमीयमानस्य हेतुत्वादव्यभिचारः स्यात् । तत्र प्रयत्नस्यैव सामर्थ्यादस्य वैफल्ये अत्राप्यजनादेरेव सामर्थ्यात्तद्वै फल्यं किं न स्यात् ? प्रथांजनादेरेव तद्धेतुत्वे सर्वस्य तद्वतः स्त्र्याद्याकर्षणं स्यात्,
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के पास आये हैं अथवा अंजन समान किसी द्रव्य विशेष के द्वारा आये हैं ? इसतरह संदेह का स्थान होने से पर जो हम जैन हैं वे आप वैशेषिक के प्रति अनुमान उपस्थित कर सकते हैं कि — विवाद में स्थित ये पशु आदि पदार्थ अंजन सदृश किसी वस्तु द्वारा समाकृष्ट होते हैं, क्योंकि उस देवदत्त के प्रति उत्सर्पणशील है, जैसे स्त्री आदि ।
वैशेषिक – अंजनादि के सदृश द्रव्य विशेष का प्रभाव होने पर भी प्रयत्न
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गुण से भी ग्रासादि पदार्थ देवदत्त के पास आकृष्ट हुए देखे जाते हैं, अतः अंजन सदृश द्रव्य द्वारा पशु प्रादिक प्राकृष्ट होते हैं ऐसा कहना अनैकान्तिक होता है ?
जैन - तो फिर प्रयत्न द्वारा भी स्त्री आदि पदार्थ का नैकान्तिक होता है ।
सदृश गुण के प्रभाव होने पर भी अंजन आदि द्रव्य आकृष्ट होना देखा जाता है, अतः आपका हेतु भी
वैशेषिक -- पशु या ग्रास प्रादि के आकृष्ट होने में अनुमीयमान प्रयत्न सदृश हेतु बनाया है अतः व्यभिचार दोष नहीं होगा ।
जैन - तो फिर स्त्री आदि के आकृष्ट होने में अनुमीयमान अंजन आदि द्रव्य सदृश को हेतु बनाया है अतः व्यभिचार नहीं श्राता ऐसा मानना चाहिए ।
वैशेषिक—-ग्रास आदि के प्राकर्षित करने में प्रयत्न गुण की हो सामर्थ्य देखी जाती है अतः अन्य अंजनादि द्रव्य की कल्पना करना व्यर्थ है ?
जैन - इसीतरह स्त्री आदि के आकर्षित करने में अंजनादि द्रव्य की ही सामर्थ्य है अतः उसमें अदृष्टादि गुण को कारण मानना व्यर्थ है ऐसा क्यों न कहा जाय ?
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