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योग के काल द्रव्य के खंडन का सारांश
योग - यह पर बहुत काल का पुराना है, यह अपर नया है इत्यादि चिह्नों से काल द्रव्य की सिद्धि होती है । देश और दिशा निमित्तक परत्व अपरत्व भिन्न जातीय है, अर्थात् देश आदि के निमित्त से होने वाला पर अपर का प्रतिभास पृथक् है और काल के निमित्त से होने वाला पर अपर का प्रतिभास पृथक् है । जैसे एक स्थान में पिता पुत्र दोनों स्थित है तो भी उनमें पिता में तो पर बड़ा है ऐसा प्रतिभास होता है। एवं पुत्र में अपर छोटा है ऐसा प्रतिभास होता है, यदि देश दिशा के निमित्त से होने वाला परत्व अपरत्व और काल के निमित्त से होने वाला परत्व - अपरत्व एक ही होता तो उक्त पिता पुत्र में एकरूप प्रतिभास होता । हम इस काल द्रव्य को सर्वथा नित्य, एकरूप एवं व्यापक मानते हैं ।
जैन — इस प्रकार का कालद्रव्य सिद्ध नहीं हो सकता । परत्व अपरत्व आदि चिह्नों से काल द्रव्य सिद्ध होगा किन्तु वह एक रूप न होकर अनेक रूप सिद्ध होगा । क्योंकि काल को एकरूप मानने से अतीतकाल, अनागतकाल इत्यादि भेद व्यवहार नहीं होगा । केवल सूर्यगमन से अतीतादि काल भेद हो जाना भी शक्य नहीं । मीमांसक आदि तो कालानुरूप मुख्य काल को नहीं मानते केवल मुहूर्तादिरूप व्यवहार काल मानते हैं किंतु मुख्य काल के बिना गौणरूप यह काल भी सिद्ध नहीं होगा । कोई क्रिया को ही काल मानते हैं, एक साथ किया, क्रम से किया इत्यादि क्रियामूलक ही युगपत् आदि काल व्यवहार होता है ऐसी किसी की जो मान्यता है वह सर्वथा असत्य है । इस प्रकार अमूर्त अणुस्वरूप काल द्रव्य के विषय में विविध मान्यता है जो प्रमाण से सिद्ध नहीं होती । आगम आदि प्रमाणों द्वारा तो काल द्रव्य असंख्यात संख्या वाला एक एक प्रकाश प्रदेश में स्थित प्ररणुरूप है, अमूर्त है । घड़ी मुहूर्त दिन आदि व्यवहार काल मुख्य काल का द्योतक है ।
|| कालद्रव्यवाद का सारांश समाप्त ॥
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