Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
View full book text
________________
३१८
प्रमेयकमल मात्तंण्डे
व्यवहारं कुर्वन्तो व्यवहारिणः । यथा वसन्तसमये एव पाटलादिकुसुमानामुद्भवो न कालान्तरे । इत्येवं कार्यान्तरेष्वप्यभ्यू ह्यम् ‘प्रसवनकालमपेक्षते' इति व्यवहारात् । समयमुहूर्त यामाहोरात्रार्द्ध मासर्वयन
किया ही करते हैं, वसन्त में ही पाटल आदि वृक्ष के पुष्प उत्पन्न हुआ करते हैं, अन्य समय में नहीं आते हैं, इसी तरह अन्य अन्य ऐसे बहुत से कार्य हैं जो अपने निश्चित काल में ही सम्पन्न हुआ करते हैं, इनका उदाहरण यथा संभव समझ लेना चाहिए। लोक में भी कहते हैं कि यह काम उत्पत्ति समय की अपेक्षा कर रहा है, जब समय आवेगा तब हो जावेगा इत्यादि ।
__ विशेषार्थ-काल द्रव्य की सिद्धि मोमांसक को करके दिखाना है, उसके लिये प्राचार्य अनेक तरह से समझा रहे हैं, लोक व्यवहार में काल, समय इत्यादि काल वाचक शब्दों का प्रयोग बहुत ही अधिक रूप से पाया जाता है, वह सहज ही काल द्रव्य का अस्तित्व बता देता है। बहुत सी वनस्पतियां अपने अपने ऋतु में ही फलती फलती हैं । आम वसंत में मंजरी युक्त होता है, निंब में बौर चैत्र में आता है। शरद ऋत में ही सप्तपर्ण नाम के वृक्ष पुष्पित हो जाते हैं। यहां तक देखने में आता है कि प्रतिदिन पुष्प का विकसित होना भी अपने निश्चित समय पर ही होता है, दुपहरिया नाम का फूल ठीक दुपहर में खिलता है, कृष्ण कमल नामक नीला सफेद पुष्प ठीक दिन के दस बजे ही खिलता है इसके पहले खिल नहीं सकता। निशिगंध का पुष्प ठोक श्याम की संध्या खिली कि खिल उठता है। रात रानी तो प्रसिद्ध है यह रात में ही महकती है । बहुत सी वनस्पतियों का कहां से कब तक पुष्प देना या फल देना है यह भी निश्चित रहता है, इन सब का कहां तक उदाहरण देवें ! हजारों वनस्पति ऐसी हैं जिनका पूष्प फल आने का समय नियत है अतः ये काल द्रव्य की अनुमापक हैं--काल द्रव्य की सिद्धि करने वाली हैं । वनस्पति के समान और भी जगत के अधिकतर कार्य कालानुसार ही हुआ करते हैं। अतिबाला, अतिवृद्धा स्त्री पुत्र को उत्पन्न नहीं कर सकती, पुत्रोत्पत्ति का समय भी निर्धारित है । जगत में बात बात में कहते रहते हैं कि समय नहीं है, जब समय आयेगा तब कार्य होगा, इस कार्य का समय निकल चका इत्यादि, सो इन सब उदाहरणों से काल द्रव्य की सिद्धि हो जाती है । जगत में काल के भेद भी बहुत से पाये जाते हैं-समय, मुहूर्त, प्रहर, अहोरात्र, पक्ष, महिना, ऋतु, अयन, वर्ष इत्यादि काल व्यवहार साक्षात् दिखायी देता है इससे भी काल द्रव्य सिद्ध
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org.