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प्रमेयकमलमार्तण्डे
न च क्रियैव कालः; अस्याः क्रियारूपतयाऽविशेषतो युगपदादिप्रत्ययाभावानुषङ्गात् । तस्य चोक्तकार्यनिर्वर्तकस्य कालस्य 'क्रिया' इति नामान्तरकरणे नाममात्रं भिद्येत ।
न च कर्तृकर्मणी एव योगपद्यादिप्रत्ययस्य निमित्तम्; यतो यौगपद्यं बहूनां कर्तृणां कार्ये व्यापारो 'युगपदेते कुर्वन्ति' इति प्रत्ययसमधिगम्यः। बहूनां च कार्याणामात्मलाभो 'युगपदेतानि कृतानि' इति प्रत्ययसमधिगम्यः । न चात्र कर्तृ मात्र कार्यमानं वालम्बनमतिप्रसङ्गात् । यत्र हि क्रमेण
से लेकर अभी तक बहुत से सूर्य के गमनागमन नहीं हुए हैं उसको "अपरोयं यह छोटा है" इस तरह का ज्ञान होता है। तब जैन ने समाधान दिया कि परापर प्रत्यय के लिए तो आपने मार्ग निकाल लिया किंतु योगपद्य-अयोगपद्य इत्यादि प्रत्यय किस प्रकार सिद्ध हो सकेंगे। सूर्य के गमनागमन एक साथ बहुत से नहीं हो सकते हैं, फिर योगपद्यादि प्रत्यय किस प्रकार हो सकेंगे। उसके लिए तो काल द्रव्य ही निमित्त हो सकता है । इस प्रकार काल द्रव्य की सिद्धि हो जाती है ।
क्रिया ही काल है ऐसा कहना भी शक्य नहीं, क्रिया तो क्रिया रूप से अविशेष रहती है उससे यौगपद्य आदि प्रत्यय कैसे हो सकते हैं ? अर्थात् –नहीं हो सकते हैं। यदि कोई यौगपद्यादि प्रत्यय को करने वाले काल को क्रिया ऐसी संज्ञा रखे तो यह केवल नाम का भेद हुआ।
कर्ता और कर्म [कार्य] ही योगपद्य आदि प्रतीति का निमित्त है ऐसा कहना भी युक्त नहीं, क्योंकि बहुत से कर्तामों का कार्य में व्यापार होना-ये पुरुष युगपत्-एक साथ कर रहे हैं इस प्रकार की प्रतीति द्वारा योगपद्य गम्य होता है, एवं बहुत से कार्यों का युगपत होना-ये कार्य युगपत्-एक साथ किये इस प्रकार की प्रतीति द्वारा योगपद्य गम्य होता है, इस योगपद्य प्रतिभास का विषय केवल कर्ता या कर्म | कार्य ] नहीं है यदि ऐसा माने तो अतिप्रसंग होगा। क्योंकि जहां पर कम से कार्य होता है वहां पर भी कर्ता कर्म का सद्भाव होने से यह प्रतिभास होना चाहिए किन्तु वहां ऐसा [युगपत् किया ऐसा योगपद्य प्रतिभास नहीं होता है । तथा ये कर्त्तापुरुष अयुगपत्-क्रम क्रम से कार्य करते हैं, अयुगपत्-क्रम से इस कार्य को किया इत्यादि अयुगपत् क्रमिक प्रतिभास भी केवल कर्ता और कर्म विषयक नहीं है, क्योंकि ऐसा मानने में वही पूर्वोक्त अतिप्रसंग
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